tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post7796290270176265566..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: अपने व्याकरण में प्रेम और अनुवाद एक जैसे होते हैंUnknownnoreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-16173271139210909412014-04-13T14:59:45.123+05:302014-04-13T14:59:45.123+05:30prem aur anuvad ek jaise ,sahi hai lekhak aur anuv...prem aur anuvad ek jaise ,sahi hai lekhak aur anuvadak lekhni ko ek naya aayam dete hain jaise do premi mil ke ham ko janam dete hain , anuvad karte samye anuvadak prem main hota hai , bahut he sundar relation haiPramila Maheshwarihttps://www.facebook.com/pramila.maheshwari.58?fref=ufinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-1983715715178522042014-04-12T14:49:49.880+05:302014-04-12T14:49:49.880+05:30अनुवादक और प्रेमी के परस्पर अंतर्संबंधों पर इस टि...अनुवादक और प्रेमी के परस्पर अंतर्संबंधों पर इस टिप्पणी से जितने अर्थ खुलते नजर आते हैं उससे ज्यदा किसी धुंधलके के आगोश में सिमटते...ठीक प्रेम की तरह इसे कोई जितना ही परिभाषित करने का प्रयास करता है उससे ज्यादा हमेशा अपरिभाषेय ही रह जाता है...परंतु असली मजा तो इससे जुझने में ही है. एक अनुवादक भी दरअसल भेद खोलने का यही प्रयास करता है.....सन्मार्गhttps://www.blogger.com/profile/03191524571726912984noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-407735345697155942014-04-12T07:56:45.567+05:302014-04-12T07:56:45.567+05:30आंद्रेस न्यूमान का यह निबंध अनुवाद करने की तुलना प...आंद्रेस न्यूमान का यह निबंध अनुवाद करने की तुलना प्रेम करने से करके हमें और विधाओं के अंतर्संबंधों पर सोचने के लिए विवश कर देता है. किसी भी गहन कृति को पढ़ते समय लेखक के मन के भीतर उतरना होता है. समीक्षा के लिए पुस्तक को बार- बार पढ़कर समझने के लिए लेखक से तारतम्य स्थापित करना होता है. किसी कलाकृति या फिल्म को सराहने की प्रक्रिया लगभग इसी प्रकार की होती है. अनुवाद में मूल लेखक और अनुवादक दोनों की सहभागिता और विधाओं से अधिक है क्योंकि अनुवादक को किसी और भाषा में कही गयी बात को अपने शब्दों में पाठकों तक पहुंचाना होता है. जब तक वह लेखक के शब्दों को पूर्णतः आत्मसात नहीं कर लेगा तब तक वह उसके भावों का अनुवाद नहीं कर पायेगा. अनुवाद के लिए प्रेरणा, प्रेम और परिश्रम की आवश्यकता है. संवाद की सीमा है. प्रेम हो या अनुवाद एक दूसरे को समझ कर उसे सही शब्द दे पाना कुछ हद तक ही संभव है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-19945016414560775792014-04-12T00:46:20.225+05:302014-04-12T00:46:20.225+05:30bahut sunder!bahut sunder!ravindra vyashttps://www.blogger.com/profile/14064584813872136888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-49111293583338283692014-04-11T21:09:53.219+05:302014-04-11T21:09:53.219+05:30अनुवादक और प्रेमी, दोनों के भीतर एक उन्मादी संवेद...अनुवादक और प्रेमी, दोनों के भीतर एक उन्मादी संवेदनशीलता आ जाती है. वे हर शब्द पर, हर भावमुद्रा पर संदेह करते हैं. हर फुसलाहट, हर भेद को टेढ़ी नज़र से देखते हैं. वे जो कुछ सुनते हैं, उस पर ईर्ष्याजन्य संदेह भी करते हैं: क्या सच में तुम मुझसे यही कहना चाहती हो? ...<br />shandar post ke liye sabad ka shukriya.अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com