tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post4834571995736142645..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: विष्णु खरे की नई कविता Unknownnoreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-41293421225975362942012-10-20T12:32:28.506+05:302012-10-20T12:32:28.506+05:30अपने कुछ बहुत प्रिय युवा कवियों की राय मेरे लिए हम...अपने कुछ बहुत प्रिय युवा कवियों की राय मेरे लिए हमेशा मूल्यवान और सांत्वनादायक होती है.आशुतोष दुबे की नई कविताएँ क्या मुझसे ही छूट गईं या इधर अर्से से नहीं आईं ? और नया संग्रह कोई ?<br /><br />आप लोगों ने लक्ष्य किया होगा कि इस कविता में <br />तीन "हरकतें" की गयी हैं.<br /><br />सत्ताईसवीं पंक्ति "खासकर चिड़ी और कालेपान को और उसकी बेगम को" में इशारा अलेक्सांद्र पूश्किन की लोमहर्षक रहस्य-कथा की ओर है जिसका अन्ग्रेज़ी अनुवाद में शीर्षक 'द क्वीन ऑफ़ स्पेड्स'है. <br /><br />उन्तीसवीं पंक्ति "श्री चार सौ बीस से किसी को कुछ हासिल नहीं होता" में राज कपूर-ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म का हवाला है जिसमें नायक "राज" मुम्बई में सड़क पर पत्ते लगाने वाले मवालियों से ठगा जाता है और फिर खुद वह हुनर सीख कर तीन पत्ती के सहारे करोड़पतियों के गिरोह की धोखाधड़ी में दाखिल हो जाता है.<br /><br />एक सौ पांचवीं पंक्ति में सन्दर्भ लेविस कैरोल की महान कृति "एलिस इन वंडरलैंड" का है जो शायद विश्व की पहली पुस्तक है जिसमें ताश के पत्तों का अद्भुत,आश्चर्यजनक,जीवंत इस्तेमाल किया गया है.<br /><br />फ़क़त.<br /><br />विष्णु खरे विष्णु खरेnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-10397366892669439842012-10-17T12:33:02.364+05:302012-10-17T12:33:02.364+05:30बहुत सुंदर कविता है. बहुत समय तक साथ रहेगी यह कवित...बहुत सुंदर कविता है. बहुत समय तक साथ रहेगी यह कविता. Geet Chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/14811288029092583963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-68545839992413482602012-10-17T01:20:37.920+05:302012-10-17T01:20:37.920+05:30मेरी जानकारी में हिंदी कविता में ताश के पत्तों और ...मेरी जानकारी में हिंदी कविता में ताश के पत्तों और उसके खेल का इतना बारीक और व्यापक ब्यौरा इससे पहले कहीं नहीं मिलता है. ये ब्यौरे ये तफसील सिर्फ पत्तों के खेल के नहीं हैं इनमें जीवन के खुरदुरे द्वंद्व की तफसील है , conflict of interest और उससे उपजे समीकरणों को साधने का एक दार्शनिक ब्यौरा भी है. आजकल चल रही फ्रेम बद्ध विमर्श जन्य कविताओं के बीच किसी वरिष्ठ की ऐसी कविता ना केवल आश्वस्त करती हैं वरन देखने सोचनेऔर लिखने के नये झरोखे भी खोलती है. ऐसी तफसीलें विष्णु जी की कई कविताओं में अलग अलग ढंग से आती रही हैं और मेरी नज़र में यह उनकी कवितायी की एक बड़ी ताक़त भी है. <br />तुषार धवल <br /><br /><br />Tushar Dhawal Singhhttps://www.blogger.com/profile/14406424952152408211noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-68644889629205620932012-10-15T12:36:57.282+05:302012-10-15T12:36:57.282+05:30
मित्रो,
दुर्भाग्यवश मेरे पास आप सब के ईमेल पते न...<br />मित्रो,<br /><br />दुर्भाग्यवश मेरे पास आप सब के ईमेल पते नहीं हैं,वर्ना अलग-अलग पत्र लिख कर आपकी हौसलाअफ्ज़ा टिप्पणियों के लिए धन्यवाद देता.<br /><br />फिर भी,बहुत आभार.<br /><br />विष्णु खरे Vishnu Kharenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-8577605170483127522012-10-09T00:09:59.982+05:302012-10-09T00:09:59.982+05:30खेलो और खेल और खिलाड़ियों से/ लगाव-भरी दूरी भी बना...खेलो और खेल और खिलाड़ियों से/ लगाव-भरी दूरी भी बनाए रखो/कुछ को तुम्हारा खेल अच्छा लगेगा कुछ को रास नहीं आएगा/ उससे क्या...<br /><br />सही है- उससे क्या...Ashutosh Dubeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-62610086370738017652012-10-08T15:34:15.983+05:302012-10-08T15:34:15.983+05:30सुन्दर! सुन्दर! Pratibha Katiyarhttps://www.blogger.com/profile/08473885510258914197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-31129105945318125282012-10-07T23:36:44.502+05:302012-10-07T23:36:44.502+05:30vishnu ji mere priya or saman niya kavi h. unki ye...vishnu ji mere priya or saman niya kavi h. unki ye kavita padh jyada achha laga...bajaye un baato ke jo unke naam se hoti h.<br />bahut vistar me padtaal karti kavita...apne anibhav ka kavita me sadhaav. bahut sare sanket apni mukhrta me ye kavita jahir krti h.<br />ek badaa kavi nirmam hota h...sub ka priya bhi nahi. aasha h unka vivadi vyaktitva unke kavi ko nuksan nahi pahunchayega.Anirudh Umatnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-68400946514544161712012-10-07T17:51:47.002+05:302012-10-07T17:51:47.002+05:30शुक्रिया अनुराग....कितने दिनों बाद वाकई एक कविता प...शुक्रिया अनुराग....कितने दिनों बाद वाकई एक कविता पढ़ी...जीवन की समझ देती हुई। शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-52045836000194659732012-10-07T11:52:49.468+05:302012-10-07T11:52:49.468+05:30खेल यहाँ जिंदगी को जीने के ढंग की तरफ इशारा करता ह...खेल यहाँ जिंदगी को जीने के ढंग की तरफ इशारा करता है जिसमें लगातार आगे बढते हुए भी चौकन्ने और सतर्क रहना होता है कि कहीं कोई हमें धोखा तो नहीं दे रहा है.कविता में हर रिश्ते और पैंतरे की गहनता से पड़ताल की गयी है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-10736760484324775382012-10-07T11:42:07.576+05:302012-10-07T11:42:07.576+05:30"तुम जुआरी नहीं हो यह तुम्हारा शग़ल है
खेल ...<br />"तुम जुआरी नहीं हो यह तुम्हारा शग़ल है <br /> खेल को लत मत बनाओ" <br />शानदार कविता है और अनोखी भी vipin choudharyhttp://www.vipin-choudhary.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-59876707769898731252012-10-07T10:59:06.070+05:302012-10-07T10:59:06.070+05:30पत्ते देखने के बाद सिर्फ चाल ही चलनी होती है
हर फड...पत्ते देखने के बाद सिर्फ चाल ही चलनी होती है<br />हर फड़ के अपने टोटके होते हैं <br /><br />...और इस जिन्दगी का क्या करें जहां ब्लाइण्ड की गुंजाइश नहीं और अपने पत्ते भी कहां ठीक दिखायी पडते हैं?विष्णु खरे की कविताओं को सलाम...naveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.com