tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post3712760959897215459..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: सबद विशेष : 20 : ज़बिग्नियव हर्बर्ट : लम्बी कविताएंUnknownnoreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-45843417053873326862016-11-21T06:39:56.381+05:302016-11-21T06:39:56.381+05:30शुक्रिया अनुराग । पुष्पेश, श्रुति और महेश जी का भी...शुक्रिया अनुराग । पुष्पेश, श्रुति और महेश जी का भी हार्दिक धन्यवाद ��<br />मोनिका Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-84946534289086618062016-11-18T21:12:37.740+05:302016-11-18T21:12:37.740+05:30शानदार!मुझे यह परिचयात्मक टिपण्णी बहुत गहरी और बौद...शानदार!मुझे यह परिचयात्मक टिपण्णी बहुत गहरी और बौद्धिक लगी। सधी हुई भाषा और विवेकपूर्ण विश्लेषण के लिये मोनिका कुमार को बधाई!कवितायें पढ़ना अभी बाकी है।महेश वर्मा mahesh verma https://www.blogger.com/profile/04275583629021409585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-65335522341266109452016-11-13T13:01:49.411+05:302016-11-13T13:01:49.411+05:30'हम इस दुनिया की व्याख्या नहीं कर सकते
और चीज...'हम इस दुनिया की व्याख्या नहीं कर सकते <br />और चीजों को बस लाड़ से पुकार लेते हैं..'<br /><br />वैसे ही कभी कभी कुछ कविताओं को पढ़ कर समीक्षा नही की जाती बस मुस्कुरा लिया जाता है, बस एक ज़र्रा भर उदासी पलकों पर आ ठहरती है, बस मन के किसी कोने में कुछ बदल सा जाता है। एक खुरदरा और बेरंग शब्द 'अस्तित्व' अपने मायने तलाश ही लेता है। और जैसा कवि कहता है-<br /><br />'अंततः अस्तित्व को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता<br />ना इससे जगह पिघलेगी<br />और ना ही समय अपने निष्ठुर प्रवाह में रुकेगा।'<br /><br />और 'उस स्मृति पर जो बहुत बड़ी है/ और एक दिल पर बहुत छोटा है।' कविता मुकम्मल बयान है कि इसकी मिठास लफ़्ज़ों की आस्तीन में खोई नहीं, बरकरार है, बेहद है। अनुवादक को ढेरों शुभकामनाये। :) <br /><br />Shrutihttps://www.blogger.com/profile/07754333553616617167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-39374219200231755412016-11-12T00:08:12.685+05:302016-11-12T00:08:12.685+05:30
अब मैं एकांत में
पेड़ के कटे हुए तने पर बैठा हूँ...<br />अब मैं एकांत में <br />पेड़ के कटे हुए तने पर बैठा हूँ <br />भूली बिसरी जंग के ठीक केन्द्र बिंदु पर <br />मैं एक धूसरित मकड़ी बुन रहा हूँ <br />कटु चिंतन कर रहा हूँ <br />उस स्मृति पर जो बहुत बड़ी है <br />और एक दिल पर बहुत छोटा है<br />.....<br />....शानदार.<br />साड़ी कविताएं एक से एक..😊😊pushpesh krantihttps://www.blogger.com/profile/10615224754299944781noreply@blogger.com