tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post3320021559475312229..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: बही-खाता : ११ : मनीषा कुलश्रेष्ठUnknownnoreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-66218768110748203802010-10-18T15:36:55.429+05:302010-10-18T15:36:55.429+05:30आप को पढा....अच्छा लगा....हमेशा ही जानने की उत्सुक...आप को पढा....अच्छा लगा....हमेशा ही जानने की उत्सुकता कुलबुलाती रह्ती है...इसी तरह पाठ्कों से संवाद बनाये रखिये...करीब लगेंगी....Arpitahttps://www.blogger.com/profile/00452777778593712485noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-23213379460936240752010-10-06T23:06:11.047+05:302010-10-06T23:06:11.047+05:30मनीषा दीदी, आपने अपनी रचनात्मकता के सूत्रों पर बेब...मनीषा दीदी, आपने अपनी रचनात्मकता के सूत्रों पर बेबाक लिखा है. अच्छा लगा आपको इस तरह जानना.शेखर मल्लिकhttps://www.blogger.com/profile/07498224543457423461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-83807316936987393562010-09-24T20:57:56.036+05:302010-09-24T20:57:56.036+05:30प्रभावित करने वाली सहज अभिव्यक्ति।प्रभावित करने वाली सहज अभिव्यक्ति।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-7174079910452104772010-09-24T16:26:31.848+05:302010-09-24T16:26:31.848+05:30मनीषा तुम्हारा ब्लाग आज पहली बार दिखायी दिया वो ...मनीषा तुम्हारा ब्लाग आज पहली बार दिखायी दिया वो भी चिठटा चर्चा के माध्यम से। बड़ा अच्छा लिखा है बस अभिभूत सी पढ़ती ही चले गयी। बधाई।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-64138357405150202402010-09-23T03:23:47.295+05:302010-09-23T03:23:47.295+05:30एक कहानीकार की कथा यात्रा का यह बहुत साफ सुथरा बया...एक कहानीकार की कथा यात्रा का यह बहुत साफ सुथरा बयान दिखता है. कहानी पहले कही जाती थी, अब लिखी जाने लगी है. उसका असली रूप उसके कहे जाने में ही होता है पर मंजी हुई भाषा उसे और सुन्दर बना देती है. मनीषा जी की कहानियां मैने पढ़ीं हैं, उनके पास अनुभवों का अथाह संसार है तो बान्धकर अपने साथ बहा ले जाने वाली भाषा भी. और मैं कहता हूं घट रीतेगा नहीं क्योंकि कहने के साथ देखने और सुनने का सिलसिला भी तो चल रहा है. कुछ बूंदें बाहर झील रच रही होती हैं तो कुछ दर्द के बादल बरस कर घट को भरते भी तो रहते हैं. Subhash Raihttps://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-67357969038227772412010-09-22T15:03:20.688+05:302010-09-22T15:03:20.688+05:30किसी भी लेखक के लिए अपने लिखने का मुकम्मल कारण ख...किसी भी लेखक के लिए अपने लिखने का मुकम्मल कारण खोज बता पाना बहुत सरल नहीं होता, और यह काम कठिनतर हो जाता है जब बताए गए उब कारणों को अपने लिखे हुए के बर-अक्स हँसते मुस्काते हुए रखना हो. मनीषा ने यह कठिनतर काम भी किया है. इसके लिए उन्हें साधुवाद. किसी लेखक को किस विषय पे क्या लिखना है वह अक्सर क्या कभी भी उसके हाथ में नहीं होता और कई कई बार जो लिखना होता है, वह इतना जटिल होता है कि किन्ही कसौटियों का मान रखते हुए विषय की सच्ची से न्याय नहीं किया जा सकता और लेखक की पहली पक्षधरता अपने लिखे हुए के प्रति होतो है, भले ही उस से लिखने के पूर्व घोषित कारण झूठे पड़ जाते हों. इसलिए, सच तो यह है कि लेखक के लिए लिखने का कोई भी कारन अंतिम नहीं होता. वह बार बार नए चेहरे के साथ लेखक के सामने आता है और अचंभित करता है.. सच कहूँ तो यह अचम्भा भी लिखने के एक सुख की ही तरह है...<br />अशोक गुप्ता <br />मोबाईल 9871187875pakherunoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-14476863311704300432010-09-22T13:35:51.872+05:302010-09-22T13:35:51.872+05:30कहानी में पाठक को अनुभूतियों का जगाने की ज़रुरत नह...कहानी में पाठक को अनुभूतियों का जगाने की ज़रुरत नहीं पड़ती .. वह कथाकार की एकल उड़ान में कब में शामिल हो जाता है पता नहीं चलता .. कविता में या निबंधों में आप चाह कर भी ये अनुभूतियाँ इस तीव्रता के साथ जगा नहीं पाते . कुछ अनुभूतियाँ अपरिचित-सी रह जाती हैं .. कहानी में हर पात्र आपसे बतियाता है और ये बातें उतनी ही आत्मीय होती हैं जितनी लेखक को उस सुख -दुःख से गुज़रते हुए लगी होंगी .<br />कहानी को किसी प्रयोगशाला की कहाँ ज़रुरत है .. वह कोई कोहलर थ्योरी की तरह बखान करने नहीं बैठेगी कि बादलों में बूंदों का बनना थर्मोडायनामिक्स से जुड़ा है ... एक बादल है जो घनीभूत हुआ और बरस गया . जिसने खिड़की से झाँका उसने सिर्फ बरसने का आह्लाद लिया और जो बाहर निकल कर भीग गया उसका आनंद गूंगे का गुड़ मानिए .<br />लेखन में सिगनेचर .. शायद इसकी ज़रुरत कथाकार को नहीं पड़ती. किसी स्टाइल के खांचे में जानबूझ कर गिरने और ढलने की उसे आवश्यकता ही कहाँ होती है .. वह तो अपने सांचे खुद गढ़ता है और उसमें पाठक को उतार देता है ... ये पाठक का विसर्जन होने जैसी अनुभूति है .. विसर्जन के सुख की अनुभूति.<br />मनीषा जी , आपकी ये अनवरत यायावरी यात्रा सुख दे गयी . आपने अपने जगत में उतार ही लिया . आभारAparna Manoj Bhatnagarhttp://manuparna.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-19032312148622539542010-09-22T12:07:25.054+05:302010-09-22T12:07:25.054+05:30रचना कर्म से रूबरू कराती ये अंतर्यात्रा सभी के लिए...रचना कर्म से रूबरू कराती ये अंतर्यात्रा सभी के लिए उपयोगी है ..उन सब के लिए जो लिखते हैं एक अजीब सी बेचैनी के साथ और जो कभी ये निश्चित नहीं कर पाते की वो बेचैनी क्या है ...!अमितhttps://www.blogger.com/profile/14228522614377198712noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-44019198852612365782010-09-22T11:57:48.180+05:302010-09-22T11:57:48.180+05:30जाहिर है अब वो जमाना नहीं रहा जहाँ लेखक किसी दूसरी...जाहिर है अब वो जमाना नहीं रहा जहाँ लेखक किसी दूसरी दुनिया का प्राणी था ....सूचनाओ की इस भीड़ के जंगल में उससे सीधे संवाद की गुंजाईश है ....ओर उसके निजी जीवन में झाँकने की भी .जहाँ से वो आम मनुष्य की तरह दिखता है ...<br />मानवीय गुण दोषों से भरपूर ...यश की वेटिंग लिस्ट में अपना नाम लिखवाने को आतुर ....उसकी दूसरी जगह किसी विषय पर टिप्पणिया कमोबेश उसके व्यक्तित्व के एक पहलु से फ़ौरन पर्दा उठा देती है .....बेरहमी से .कहने का आशय ये है के आज के लेखक के पास इस टेक्नोलोजी के गर फायदे है तो शायद नुक्सान भी है ..... बरहाल ..अब जब लोगो को बारीकी से प्रेम चंद का पोस्ट मार्टम करते देखता हूँ तो हैरानी होती है ...".मन्त्र" में कोई भाषा शिल्पता नहीं थी ....न ही लेखक की विद्धता किसी हिस्से पर हावी होकर आंतकित करती थी .... <br />वो सीधे दिल से उतरी थी ओर जेहन पर आज भी कायम है ......ऐसा ही हमीद का चिमटा......शायद ये भी लेखक के एक सिग्नेचर है ..इसका ये आशय कतई नहीं के जिनके पास इसकी योग्यता है .वे उनकी खामिया है ....कहने का मतलब है कहानी का कंटेट लेखक से महत्वपूर्ण ना हो...कहानी जटिल ना हो जाए ...........किसी ने कहा था एक अच्छा लेखक बन ने के लिए एक बड़ा पाठक बन ना जरूरी है .सच कहा था .....किताबे ओर दूसरे तमाम तजुर्बे हमें शायद कुछ द्र्श्यो ओर कुछ घटनाओं को एक ओर सिरे से देखने के हमारे नजरिये को पैना करती है .....ओर शायद हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में मदद.......किसी इंटर व्यू में कुंवर नारायण जी ने कहा था कवी अपने समय का चौकीदार होता है........उसे ये जिम्मेवारी भूलनी नहीं चाहिए ....कविता केवल स्वंय का एक्टेंशन नहीं है ....<br />शायद कहानी भी अपनी जिम्मेवारी निभाती है .....<br />आपकी स्वीकारोत्ती भली लगी ....<br />.डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-50332204993880253562010-09-22T11:20:35.399+05:302010-09-22T11:20:35.399+05:30बहस सधी हुई, शानदार सहेजने लायक पोस्ट, आजकल कहानिय...बहस सधी हुई, शानदार सहेजने लायक पोस्ट, आजकल कहानियों से ज्यादा ऐसे लेख पढने में मज़ा आता है.सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-77249115238033510482010-09-22T11:10:53.118+05:302010-09-22T11:10:53.118+05:30सुंदर.आत्मीय.
जब भी शोर-गुल से अलग होकर आपके लिखे ...सुंदर.आत्मीय.<br />जब भी शोर-गुल से अलग होकर आपके लिखे हुए को याद करता हूँ तो आश्वस्त होता हूँ कहानीकार ही होना था आपको.<br /><br />यह बिल्कुल सही है कि मनीषा कुलश्रेष्ठ नें विषय चुने और उनपर कहानियाँ लिखी.चाहे वह स्वांग हो या कुरजां या फिर भगोड़ा.लेखिका के रूप में उनकी यह प्रतिबद्धता आयोजित भोगे हुए सचों पर सीरीज लिखने से ज्यादा महत्वपूर्ण है.मैं तुलना नहीं कर रहा पर मुझे विषयो पर शोध करके कहानियाँ लिखनेवालों में संजीव की भी हमेशा याद आ जाती है.<br /><br />यह डायरी जैसा निश्छल,विनम्र गद्य पढ़कर मुझे लगा जिसके भीतर ऐसी सिनिग्ध भाषा हो उसे लेखक के अलावा कोई दूसरी भूमिका चुननी भी नही थी<br /><br />रही बात प्रसिद्धि की तो मैं इसे गैर ज़रूरी मानता हूँ.किसका लेखन हमारे भीतर लौ की तरह कौंधता है,किससे हमारी पाठकीय संगति बन जाती है यह मुख्य होते हैं.मैं हमेशा सोचता हूँ.बदनामी की तरह प्रसिद्धि भी संक्रामक होती है.फैलती है तो फैलती जाती है.<br /><br />शैलेश मटियानी को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली,वे प्रसिद्धि का उद्योग चलानेवालों को नहीं रुचे तो क्या इबू मलंग और अर्धांगिनी तो सांस लेते हैं दिलों में<br /><br />पर यह सच है कि लेखक प्रसिद्धि भी चाहता ही है.इसे लेखन के संकट की तरह देखा जाना चाहिए कि हमारे समय मे प्रसिद्धि ही विज्ञापन है,अक्सर विज्ञापन ही प्रसिद्धि<br /><br />पढकर अच्छा लगाशशिभूषणhttp://www.hamariaavaaz.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-22065961763693992502010-09-22T11:00:42.998+05:302010-09-22T11:00:42.998+05:30मनीषा जी की अनुभव यात्रा पठनीय हैमनीषा जी की अनुभव यात्रा पठनीय हैप्रदीप जिलवानेhttps://www.blogger.com/profile/08193021432011337278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-20133347076590510372010-09-22T10:04:04.837+05:302010-09-22T10:04:04.837+05:30han yahi kahani hai.....jabardust....soch...aur sa...han yahi kahani hai.....jabardust....soch...aur samajh dono...hi jabrdust....anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-89552936982831887972010-09-22T09:34:01.153+05:302010-09-22T09:34:01.153+05:30"यायावरी और अनुभव जगत में लगातार होते विस्तार..."यायावरी और अनुभव जगत में लगातार होते विस्तार ने, मन को एक किस्से - कहानियों से लबालब पात्र बना दिया था जिसे एक न एक दिन छलकना ही था. अब छलका है तो रीतने तक लिखना ही होगा." कहानी स्वयं में एक यायावर विधा है .. कविता आस-पास को देखती है , घूरती है , एकल उड़ान भी भरती है पर कई कोने छूटते जाते हैं ... घुमक्कड़ी नहीं हो पाती . कुछ बिम्ब .. फंतासी , गाढ़े रंग होते हैं लेकिन एक छोटे कैनवास पर सब कुछ उलीचने जैसा रहता है .अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-79075055594626118632010-09-22T08:41:59.098+05:302010-09-22T08:41:59.098+05:30नयी परिभाषात्मक यात्रा।नयी परिभाषात्मक यात्रा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com