tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post2190844612865881916..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: तीन नई कविताएं : व्योमेश शुक्लUnknownnoreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-85321583042404325642013-03-30T14:09:11.843+05:302013-03-30T14:09:11.843+05:30बिल्कुल अभी के अनुभव जीवाश्म बनते हैं झाँकते हैं स...बिल्कुल अभी के अनुभव जीवाश्म बनते हैं झाँकते हैं सड़क के आईने में से <br />लोग देखते हैं अपनी बीती हुई शक्लें <br />कभी पत्ता, कभी पीक, कभी गोबर <br />इस बात के मरणधर्मा प्रमाण कि कभी थे.<br /><br /><br />शुभकामनाएँ !kumar anupamhttps://www.blogger.com/profile/13524327053753913754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-58013497067302973482012-01-06T12:27:11.693+05:302012-01-06T12:27:11.693+05:30सभी कवितायेँ श्रेष्ठ हैं. मेरा व्योमेश जी से निवेद...सभी कवितायेँ श्रेष्ठ हैं. मेरा व्योमेश जी से निवेदन है कि वे अपना ई मेल पता दे दें. मैं एक संकलित संग्रह के सिलसिले में उन्हें संपर्क करना चाहता हूँ.Prem Chand Sahajwalahttps://www.blogger.com/profile/16785012663655370640noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-4912751191493757912011-04-07T19:43:18.157+05:302011-04-07T19:43:18.157+05:30प्रयोगों का स्वागत होना चहिए. पता नही ये अच्छी कवि...प्रयोगों का स्वागत होना चहिए. पता नही ये अच्छी कविताएं हैं या कुछ और, लेकिन पठनीय हैं. प्रेरक हैं,और रोचक भी. <br /><br />ये कविता का ज्ञान रंजन क्या है?अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-12525169341520137782011-03-30T19:27:33.905+05:302011-03-30T19:27:33.905+05:30मामूलियत बीत गयी महानताएं बीत गईं जोश बीता लड़ाइया...मामूलियत बीत गयी महानताएं बीत गईं जोश बीता लड़ाइयाँ बीतीं <br />पटाक्षेप का भी पटाक्षेप हो गया <br />बहुत खूब. प्रस्तुतकर्ता एवं रचनाकार दोनों को बधाईअवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/05755723198541317113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-84976128050578799562011-03-28T20:52:08.039+05:302011-03-28T20:52:08.039+05:30बैक टु बैक तीनों नोट.बैक टु बैक तीनों नोट.राहुल सिंहhttp://akaltara.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-77180296573517826802011-03-27T14:51:38.322+05:302011-03-27T14:51:38.322+05:30अनुराग जी, में हतप्रभ हूँ.
वाह, क्या तो लिखा है जन...अनुराग जी, में हतप्रभ हूँ.<br />वाह, क्या तो लिखा है जनगणना पर. फिर सड़क का चरित्र इंसानी चरित्र के साथ कितना जुड़ता है यहां. आईने की तरह साफ शब्द . और अंत में प्रेम की व्यथा. बहुत सुन्दर.<br />बधाई व्योमेश जी को ...और आप को भी धन्यवाद इसे शेयर करने के लिएNirmal Panerinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-86076631397717599042011-03-27T14:41:03.501+05:302011-03-27T14:41:03.501+05:30कविता के 'ज्ञानरंजन' होने की सीमाएं भी झलक...कविता के 'ज्ञानरंजन' होने की सीमाएं भी झलक रही हैं । प्रयोगों के आकर्षण से कविता मुक्त हो जाए तो ज्ञानरंजन की जगह व्योमेश दिखेंगे । शुभकामनाएँ !आशुतोष पार्थेश्वरhttps://www.blogger.com/profile/08831231551236237964noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-90759099384385864222011-03-26T15:19:04.507+05:302011-03-26T15:19:04.507+05:30अत्यन्त पठनीयअत्यन्त पठनीयप्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-73405608700437621472011-03-26T14:31:41.405+05:302011-03-26T14:31:41.405+05:30बहुत अच्छी कविताएं......बहुत अच्छी कविताएं......राजेश चड्ढ़ाhttps://www.blogger.com/profile/13615403040017262901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-5562187160986572982011-03-26T11:18:23.782+05:302011-03-26T11:18:23.782+05:30युवा पीढ़ी में भाई व्योमेश की कविताएं मुझे हमेशा आ...युवा पीढ़ी में भाई व्योमेश की कविताएं मुझे हमेशा आकर्षित करती रही हैं. उनकी कविताओं का एक अलग ही मिजाज और स्वाद है.प्रदीप जिलवानेhttps://www.blogger.com/profile/08193021432011337278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-78507877679404904762011-03-26T01:35:36.468+05:302011-03-26T01:35:36.468+05:30प्रिय अनुराग,
यह तीसरी कविता के बारे में है.मैं...प्रिय अनुराग,<br /> यह तीसरी कविता के बारे में है.मैं उस पर अटका और थोड़े थोड़े अंतराल के बाद उसे चार-पांच बार पढ़ा .हालांकि मैं कोई भी बात स्थापना के स्वर में नहीं कहना चाहता ,फिर भी कहने की इच्छा है (और व्योमेश की कुछ पुरानी कविताओं की छवियाँ भी हैं यह कहते हुए )हम शायद कविता के ज्ञानरंजन को बनते हुए देख रहे हैं.himanshuhttps://www.blogger.com/profile/09364856853134771001noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-7868344739416924042011-03-25T23:46:32.955+05:302011-03-25T23:46:32.955+05:30अनुराग बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ऐसी प्रस्तुतियों ...अनुराग बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ऐसी प्रस्तुतियों के चलते ही सबद की नयी पोस्ट का इंतजार रहता है।इलाहाबादी अडडाhttps://www.blogger.com/profile/08857919109866370465noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-81628018529900230172011-03-25T23:36:06.467+05:302011-03-25T23:36:06.467+05:30बिल्कुल अभी के अनुभव जीवाश्म बनते हैं झाँकते हैं स...बिल्कुल अभी के अनुभव जीवाश्म बनते हैं झाँकते हैं सड़क के आईने में से<br />लोग देखते हैं अपनी बीती हुई शक्लें<br />कभी पत्ता, कभी पीक, कभी गोबर<br />इस बात के मरणधर्मा प्रमाण कि कभी थे<br /><br />अच्छा प्रयोगप्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-63145758078814234722011-03-25T23:35:18.794+05:302011-03-25T23:35:18.794+05:30sundar rachnaayen hain...sundar rachnaayen hain...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16252422664899321496noreply@blogger.com