पहला वाक्य किताब की प्रयोगशाला हो सकता है
लिखना मैंने इत्तेफाक से शुरू किया, संभवतः एक दोस्त के आगे यह सिद्ध करने के लिए कि मेरी पीढ़ी लेखक पैदा करने में सक्षम है। उसके बाद मैं मज़े के लिए लिखने के जाल में फंसा और उसके बाद ही असल में मैं जान पाया कि दुनिया में लिखने से अधिक प्रिय मुझे कुछ नहीं था।
* तुमने कहा कि लिखने में आनंद है। तुमने यह भी कहा था कि यह विशुद्ध यातना है। यह है क्या ?
दोनों बातें सच हैं। शुरू में जब मैं अपना शिल्प शीख रहा था, मैं बहुत खुशी-खुशी, क़रीब-क़रीब गैरजिम्मेदारी के साथ लिखा करता था। मुझे याद है, उन दिनों, एक अख़बार में सुबह दो या तीन बजे अपना काम ख़त्म करने के बाद मैं आराम से चार, पाँच, यहाँ तक कि दस पन्ने लिख लिया करता था। एक दफे, एक ही सिटिंग में मैंने एक छोटी कहानी पूरी कर ली थी।
* और अब ?
अब अगर मैं किस्मत वाला हुआ तो दिन भर में एक अच्छा पैराग्राफ लिख पाता हूँ। समय बीतने के साथ लेखन कार्य बहुत दर्द भरा हो गया है।
* क्यों , सोचा तो यह जाता है कि जितना अच्छा आपका शिल्प होगा, लेखन उतना ही आसान हो जाता है ?
होता बस यह है कि आपकी जिम्मेदारी का अहसास बड़ा हो जाता है। आपको लगने लगता है कि आपके लिखे हर शब्द में अधिक वज़न होता है और वह कहीं अधिक लोगों को प्रभावित करता है।
* संभवतः यह प्रसिद्धि का परिणाम है, क्या तुम्हें इससे खीझ होती है ?
मुझे इससे चिंता होती है। एक ऐसे महाद्वीप में जो सफल लेखकों के लिए तैयार न हो, साहित्यिक सफलता में कोई दिलचस्पी न रखने वाले व्यक्ति के साथ सबसे खराब बात यह हो सकती है कि उसकी किताबें धड़ाधड़ बिकने लगें। मुझे सार्वजनिक तमाशा बनने से नफरत है। मुझे टेलीविजन, गोष्ठियों और गोलमेज़ों से नफरत है।
* साक्षात्कार ?
हाँ, उनसे भी। मैं किसी को भी सफल होने की दुआ नहीं दूँगा। यह एक ऐसे पर्वतारोही जैसा है जो जान की बाज़ी लगाकर चोटी पर पहुँचता है। वहां पहुँचने के बाद वह क्या करे ? नीचे उतरे या जितना संभव हो उतनी गरिमा बनाए रखते हुए नीचे उतरने का प्रयास करे।
* जब तुम युवा थे और दूसरे काम करके अपनी रोटी चलातेथे, तुम रात को लिखा करते थे और बहुत सिगरेट पीते थे।
दिन में चालीस।
* और अब ?
अब मैं सिगरेट नहीं पीता हूँ और सिर्फ़ दिन में काम करता हूँ।
* सुबह के समय ?
नौ बजे से दोपहर तीन बजे तक एक शांत, काफ़ी गर्म कमरे में। आवाजों और ठण्ड से मेरा ध्यान बंट जाता है।
* क्या ख़ाली पन्ने को देखकर तुम्हें भी वैसी ही निराशा होती है जैसी दूसरे लेखक महसूस करते हैं ?
''क्लास्ट्रोफोबिया'' के बाद यह मुझे सबसे निराशापूर्ण चीज़ लगती है। लेकिन इस बारे में मैंने हेमिंग्वे की एक सलाह पढ़ने के बाद चिंता करना छोड़ दिया। उसने कहा है कि आपने अपना काम तब छोड़ना चाहिए जब आपको मालूम हो कि आप अगले दिन क्या करना चाहते हैं।
* किसी पुस्तक के लिए तुम्हारा प्रस्थान बिन्दु क्या होता है ?
एक विज़ुअल इमेज। मेरे विचार से दूसरे लेखकों के लिए एक किताब का जन्म किसी विचार या सिद्धांत से होता है। मैं हमेशा एक इमेज से शुरू करता हूँ। ''ट्यूज्डे सियेस्ता'' , जो मेरे ख्याल से मेरी सर्वश्रेष्ठ छोटी कहानी है, का जन्म एक स्त्री और एक लड़की को देखकर हुआ था जो काले कपड़े पहने, काला छाता ओढे तपते सूरज के नीचे एक वीरान शहर में टहल रही थीं। ''लीफ स्ट्रोम'' में यह एक बूढ़े की इमेज है जो बारान्कीया के बाज़ार में एक लांच का इंतज़ार कर रहा है। वह एक तरह की ख़ामोश चिंता के साथ इंतज़ार कर रहा था। वर्षों बाद मैंने पेरिस में ख़ुद को एक चिट्ठी -- संभवतः -- मनी ऑडर -- की प्रतीक्षा करते पाया -- उसी चिंता के साथ, और मैंने तब स्वयं को उस व्यक्ति से स्मृति से जुड़ा हुआ जाना।
* ''वन हंड्रेड इयर्स ऑफ़ सालीट्यूड'' में तुमने किस विसुअल इमेज का इस्तेमाल किया है ?
एक बच्चे को सर्कस में प्रर्दशित की जा रही बर्फ़ दिखाने ले जा रहा एक बूढा आदमी।
* क्या वे तुम्हारे नाना थे ?
हाँ।
* क्या कोई ऐसा वाकया हुआ था ?
ठीक वैसा ही नहीं, पर इसकी प्रेरणा एक वास्तविक कारण से मिली थी। मुझे याद है, जब मैं आराकाटाका में एक नन्हा बच्चा था। मेरे दादाजी मुझे सर्कस में एक कूबड़ वाला ऊँट दिखने ले गए थे। एक दिन जब मैंने उनसे कहा कि मैंने सर्कस में बर्फ़ नहीं देखी तो वे मुझे बनाना कंपनी के इलाके में ले गए। वहां उन्होंने कंपनी के लोगों से जमी हुई मुलेट मछलिओं का एक क्रेट खुलवाया और मुझसे अपना हाथ भीतर डालने को कहा। ''वन हंड्रेड इयर्स ऑफ़ सालीट्यूड'' पूरा का पूरा इस एक इमेज से शुरू हुआ था।
* तो तुमने दो स्मृतियों को जोड़कर उस किताब का पहला वाक्य लिखा था ? क्या था वह ?
'' बहुत सालों बाद, फायरिंग-स्क्वाड के रु-ब-रु कर्नल आरेलियानो बुएनदीया को वह सुदूर दुपहरी याद आनी थी, जब उसके पिता उसे बर्फ़ की खोज करवाने ले गए थे।''
* किताब के पहले वाक्य को तुम आम तौर पर बहुत महत्व देते हो। एक बार तुमने मुझे बताया था कि कई बार तुम्हें पहला वाक्य लिखने में पूरी किताब लिखने से ज्यादा समय लगा है, क्यों ?
क्योंकि पहला वाक्य किताब की शैली, संरचना और उसका आकार जांचने की प्रयोगशाला हो सकता है।
Comments
Abhivyaki ki nakkasiyon ko parakhane wale kuchh aur kahenge, liekin mujhe Marquez ko padhate hue gyat hua, jimmedariyan jitani badhati jati hain, parmanuon ke nabhik se electron ke sneh ki tarah gyan ki seemayen sankuchit hoti hain. Falatah, utpadakata par gunatmakata ka force lagne lagata hai. Astu.
ख़ूबसूरत प्रस्तुति. अशोक जी को बधाई. इस बड़े काम के लिए.
रवींद्र व्यास, इंदौर
गाब्रीएल गार्सीया मारकेज़ की "Hundred Years of Solitude" के प्रथम १० पन्ने पढ के, दो दिन पहले ही एक कविता लिखी थी :
क्या समय के पहले समय नहीं था?
पानी से पहले नहीं था पानी?
खड़ा हठीला टीला ये जो, क्या इससे पहले रेत नहीं था?
और मृदा संग हवा कुनमुनी,
धूप, पात, वारि ने मिल कर,
स्वर मिश्री सा साधा उससे पहले सुर समवेत नहीं था?
तैरे आकाशी गंगा सूरज,
धरा ज्योति में गोते खाये,
इससे पहले सभी श्याम था, कोई आंचल श्वेत नहीं था ?
नाम नहीं था जब चीजों का,
प्रीत, पीर क्या एक नहीं थे?
ऐसा क्यों लगता है मुझको, जैसे इनमें भेद नहीं था ?
तुमने जो इतने भावों को,
ले छिड़काया मन में मेरे,
पहले भी ये ज़मीं रही थी, पर चिर नूतन खेत नहीं था !
शार्दुला, १३ फरवरी ०९
(गेबरियल गार्सिया मार्क्वेज़ को समर्पित)