tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post8576207277475763549..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: शताब्दी स्मरण : शमशेर बहादुर सिंहUnknownnoreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-25901509379441368712011-02-05T02:39:53.866+05:302011-02-05T02:39:53.866+05:30मृत्यंजय भाई कहते हैं : '' निराला का एक गी...मृत्यंजय भाई कहते हैं : '' निराला का एक गीत है "ताक कमसिन वारि". आलोचकों ने इसे निराला की तथाकथित विक्षिप्तता के खाते में डालकर अपना फ़र्ज़ अदा किया.''<br /><br />ऐसे भी क्यों न देखा जाए कि गीत में निहित 'अनेकार्थता' ही वह समस्या है जिससे पार न पाने की सूरत में कवि के लिए 'विक्षिप्तता' का अभिनव 'फुटकल' खाता खोल दिया जाता है ? <br /><br />और ऐसे भी क्यों न देखा जाए कि 'अनेकार्थता' ही 'व्याख्या' के वे विभिन्न अवसर संभव करती है जो कृति के संगीत, नाटक, फ़िल्म, या दूसरी भाषाओँ में अनुवाद के ज़रिये हमें हासिल होते हैं.<br /><br />'अनेकार्थता' के मुद्दे को ज़रूरत से ज़्यादा तूल देने का इरादा नहीं है. हम सब को अपने-अपने तरीक़ों से मालूम है कि रचना के उत्कर्ष के साथ रचना की अनेकार्थता का क्या रिश्ता है, कि इन दोनों के बीच कोई सरल गणित (मसलन, अनेकार्थता = उत्कर्ष) नहीं काम कर रहा होता. फिर भी, इतना तय है कि 'अनेकार्थता' पाठक के लिए - और आलोचक-पाठक के लिए अक्सर एक असुविधाजनक नैतिक-राजनीतिक स्थिति रही है. वह समय में ज़्यादा जगह की माँग करती है. यों, वह, हमारा यथार्थ-बोध जिस स्पेस-टाइम-कोंटीन्यूअम में निर्मित होता है, उसे भी बदलने की पेशकश है. वह देश और काल के निश्चित अनुपात को कुछ गड़बड़ा देती है. निराला के इसी गीत को लें - गुंदेचा बंधु इसे ही क्यों गाते हैं ? वैसे तो निराला के गीत ख़ूब गाये गये हैं, लेकिन क्या उन गीतों में बढ़त के अवकाश 'ताक......' जितने हैं ? आख़िर इससे भी बहुत कुछ तय होना है कि हम (यानी कवि के अलावा कविता से जुड़े अन्य लोग) इस अनेकार्थता या एकार्थता को सँभालते कैसे हैं. सारा श्रेय सिर्फ़ कवि का नहीं है. <br /><br />शेष बातें भी शीघ्र.Vyomesh Shuklanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-61694485255314550922011-02-04T19:12:10.959+05:302011-02-04T19:12:10.959+05:30vyomesh ke is lekh ko sunne se vanchit rah gaya th...vyomesh ke is lekh ko sunne se vanchit rah gaya thaa, aapne yahan dekar bahut achcha kiyaa. is lekh se kai nai-puraani bahasen phootati hain, between the lines. ise samajhakar hum log aapas mein engage karen to achcha rahega. is smriddha lekh ke liye Vyomesh ko badhai. Pranaypranay krishnahttps://www.blogger.com/profile/17453882297227785432noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-77976734945503054442011-02-04T09:03:36.370+05:302011-02-04T09:03:36.370+05:30हममें इस बात पर शायद कोई मतभेद नहीं है कि शमशेर के...हममें इस बात पर शायद कोई मतभेद नहीं है कि शमशेर के यहाँ अर्थवान शब्द की संभावनाएँ अनंत हैं, बल्कि मुद्दा यह है कि,<br />१. इस अनंत सम्भवन का वक़्त से क्या रिश्ता है, और<br />२. एक ही वक़्त में कविता के अर्थ की एक से ज़्यादा संभावनाओं की - व्यतीत और आगामी, प्रासंगिक या अप्रासंगिक संभावनाओं की - जगह है या नहीं?<br /><br />मृत्युंजय भाई की प्रतिक्रिया में कबीर का दृष्टांत बेहद दिलचस्प और मानीखेज़ है. रचना के तीन सौ बरस बाद तक वह लगभग अँधेरे में रहे, उन्हें कवि या साहित्यकार की कोटि की बजाय 'फुटकल' ख़ाते नसीब हुए, बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक के पहले तक उनकी कविता के अर्थ की सभी संभावनाएँ सोयी हुई थीं. इसके बाद के समय में कबीर जिस तरह ज़रूरी हो उठते हैं, उसमें युगीन परिस्थितियों की भूमिका कितनी है और क्षितिमोहन सेन और रवीन्द्रनाथ टैगोर की अदम्य कल्पनाशील रचनात्मकता की कितनी, यह गहरी जाँच और बहस का मुद्दा है. मैं सेन या रवीन्द्रनाथ या हजारी प्रसाद द्विवेदी को वक़्त से बाहर करके सोचने की पेशकश नहीं कर रहा हूँ, लेकिन इससे कौन इनकार करेगा कि इनके व्यक्तित्व सिर्फ़ वक़्त की ही नुमाइंदगी नहीं कर रहे थे.<br /><br /> <br /><br />वक़्त के आग्रहों से रचना बेशक प्रासंगिक या अप्रासंगिक होती है, होती रही है, लेकिन इसमें रचना की अनेकान्तता का भी कमाल है, कि उसके विभिन्न हिस्से अलग-अलग दौरों में, अलग-अलग आग्रहों से जगमगाने लगते हैं, या नहीं भी जगमगाते. मैं एक दूसरी बात कहना चाहता था – कि एक ही वक़्त में किसी ख़ास रचना की अर्थमयता के कितने स्तर साथ-साथ जीवंत हैं – जो ज़रूरी हैं वे और जो कम ज़रूरी हैं वे भी. आख़िर इस लक्ष्य की ख़ातिर भी रचना को – शमशेर की रचना को - पढ़ा जाना चाहिए. किसी ख़ास पद्धति के अतिरिक्त दबाव के साथ रचना को पढ़ने के उत्साह में कुछ भटक जाने में भी कोई हर्ज नहीं है, दिक़्क़त अपने ही पाठ को एकमात्र मानने की ज़िद और उस ज़िद के अहाते में समूची रचनात्मक शख्सियत को अँटा लेने से शुरू होती है, दिक़्क़त अपने पैमानों पर पूरे कवि को या पूरे स्रष्टा को हासिल कर लेने की लालसा से शुरू होती है. कबीर को आधुनिक बना लेने के अनर्गल अतिसामयिक हल्ले का आलम यह है कि विद्वान् लोग बड़ी-बड़ी गोष्ठियों में कबीर तो कबीर, व्यास, भवभूति और वाल्मीकि तक को आधुनिक बता रहे हैं. सत्तामक आलोचना की सबसे बड़ी मुसीबत यही है कि उसे अपनी ही शर्तों पर पूरे के पूरे रचनाकार चाहिए. अनेकार्थता इस स्तर पर ऐसी एकायामिता का प्रतिकार भी हो सकती है. यह भी एक समय-संबंध हो सकता है.<br /><br /><br />विषयांतर के लिये माफ़ी, शेष बातें शीघ्र.Vyomesh Shuklanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-43557480093280372782011-02-03T22:28:02.624+05:302011-02-03T22:28:02.624+05:30apko our vyomesh dono logo ka dhanyavad. shamsher ...apko our vyomesh dono logo ka dhanyavad. shamsher ji par idher kayee patrikavon ke visheshank aye hai, par yahan vyomesh ne jo samagri prastut ki hai vah apratim hai.shamsher ji ki bhasha va uski lay ko pakadne me sahayak hai yeh alekh. punah vyomesh ji ko badhayee.<br />Dr. Dinesh tripathidinesh tripathihttps://www.blogger.com/profile/12195151895327682585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-56760142101820791872011-02-03T22:14:20.108+05:302011-02-03T22:14:20.108+05:30ख.
संगीत और कविता के संबंधों को लेकर व्योमेश भाई क...ख.<br />संगीत और कविता के संबंधों को लेकर व्योमेश भाई क़ी फ़िक्र से मैं भी बावस्ता हूं. ऐसे में आचार्य शुक्ल का वाक्य बरबस याद आ रहा है कि 'नाद-सौन्दर्य से कविता क़ी आयु बढ़ती है.' यहाँ नाद के अर्थ में छंद, राग, लय आदि को समाहित मानना चहिये.<br />हिन्दी कविता में संगीत तत्व क़ी गहरी रवायत चली आयी है. खड़ी बोली क़ी कविता के आने के पहले क़ी बोलियों क़ी कविता में संगीत का गहरा राग मौजूद है. भक्तिकाल हो या रीतिकाल, सब जगह संगीत कविता में बेतरह गुंथा हुआ था. अगर कभी 'राग कल्पद्रुम' नाम का पोथा आपकी नजर के सामने से गुजरा हो तो आप इस बात को बखूबी समझ चुके होंगें. इस पोथे में ढेरों राग-रागीनियों में बंदिशें दी गयी हैं. भक्तिकालीन कवियों से लगाय मुग़ल बादशाहों तक क़ी बंदिशें. गरज यह कि जब नवजागरण के दौर में खड़ी बोली हिन्दी काव्य भाषा बनी तो कवियों के सामने न सिर्फ छंदों क़ी, बल्कि संगीत और कविता के पुराने संबंधों को खड़ी बोली में फिर से व्यवस्थित करने क़ी जरूरत आन खड़ी हुई. भारतेंदु और उनके साथियों ने इस को समझा और कुछ प्रयोग किये. द्विवेदी युग में पाठक जी जैसे कवियों क़ी रचनाएं भी इस मुश्किल से उलझने क़ी कोशिश करती रहीं. पर छायावाद ने इस मुश्किल का तोड़ निकाला. और बातों क़ी तरह निराला ने यहाँ भी अगुवाई क़ी.<br />निराला का एक गीत है "ताक कमसिन वारि ". आलोचकों ने इसे निराला क़ी तथाकथित विक्षिप्तता के खाते में डालकर अपना फ़र्ज़ अदा किया. पर कभी आप इसे उमाकांत और रमाकांत गुंदेचा से सुनिए (http://mrityubodh.blogspot.com/2010/09/blog-post_25.html) . तब आपको पता लगेगा कि यह ध्रुपद क़ी बंदिश कैसे निभती है, और क्या प्रभाव पैदा करती है.<br />खैर, काबिले जिक्र यह है कि निराला के सजल उर शिष्य शमशेर ने संगीत क़ी विरासत उन्हीं से हासिल क़ी. खुद निराला पर लिखी कविता भी संगीत के तत्वों से भरी पूरी है. व्योमेश भाई इसका जिक्र करते तो बेहतर होता. दूसरे बात सिर्फ ताल क़ी नहीं है. शमशेर क़ी कविता का राग उसके सम्पूर्ण बाने में रचा हुआ है. उनकी कविता क़ी ऐस्थेटिक्स पर बात करते हुए हमें इसका ख़याल रखना होगा, ऐसी मेरी समझ है.<br /><br />शमशेर जी क़ी एक कविता याद करें जिसे शायद मैं अपनी बात क़ी सनद बनाना चाहूँगा -<br />निंदिया सतावे मोहें संझहीं से सजनी...मृत्युंजयhttps://www.blogger.com/profile/09135755676182103803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-51008858388234793892011-02-03T16:20:28.132+05:302011-02-03T16:20:28.132+05:30क.
शमशेर बहादुर सिंह की कविता के मानी की बात हमेशा...क.<br />शमशेर बहादुर सिंह की कविता के मानी की बात हमेशा मुश्किलात पेश करती है. सुहृद व्योमेश की मानें तो शमशेर की कविता में अर्थ 'खुले' और गतिशील हैं. मतलब यह की कविता स्थिर नहीं, गतिशील है.<br />बात तो ठीक लगती है. ऐसे मेरे ख़याल में बहुतेरी ऐसी कवितायें आ रही हैं, जहां अर्थ की ऐसी भावभूमि मौजूद है, कविता का ऐसा गठन मौजूद है. मसलन उर्दू की शायरी को ही लें. क्योंकि खुद शमशेर जी का दायरा उर्दू शायरी से पुररौशन रहा है, इसलिए शायद उनपर उसके कुछ असरात दिखें. ग़ालिब की या कहिये तो उर्दू शायरी की पूरी रवायत रही है कि अर्थ को बांधा न जाय, उसके विस्तार के पहलू को छोड़ दिया जाये. इस सिलसिले में यह बात भी साफ़ ही है कि चूंकि उर्दू शायरी की भावभूमि 'मनोविकार' ही हैं, इसलिए भी उसमें यह सिफत पैदा हो जाती है. मेरी समझ से यही उर्दू शायरी की जान है, न कि मुहाविरा, जैसा रामस्वरूप चतुर्वेदी बताया करते थे. देखना चाहिए कि क्या मनोविकारों से बुनी होने के नाते ही शमशेर की कविता में भी अर्थ के अनेकांत और गतिशील रूप मौजूद हैं?<br />कविताओं में खुलापन और अनेकार्थता कई बार मुनासिब वक्त के इंतज़ार में भी खड़े रहते हैं. मसलन कबीर की कविता की अनेकार्थता समय के साथ बदलती गयी. यही तुलसी और मीरा के साथ हुआ. यही अक्का महादेवी के साथ हुआ. शायद कोई लिखी गयी कविता वक्त के प्रवाह में अपने एक आयाम को विन्यस्त कर लेती है. सो, भले ही टेक्स्ट न बदले, कंटेक्स्ट बदल जाता है. और जब कंटेक्स्ट बदल जाता है तो वह कविता के 'पाठ' में भेद पैदा कर देता है. कविता का टेक्स्ट ही एक मात्र वस्तु नहीं होता. प्राथमिक होने की बावजूद उसे पाठक तक पहुंचने के लिए एक पद्धति का सहारा लेना होता है. अगर वह पद्धति द्वंद्वात्मकता है तो इसके नियमों की मुताबिक़ कविता का टेक्स्ट/पाठ अगर कंटेस्ट को प्रभावित कर सकता है तो कविता का कंटेक्स्ट भी कविता के पाठ/टेक्स्ट में फेरबदल कर सकता है. टेक का सवाल यह कि शमशेर की कविता की अनेकार्थता का समय का आखिर क्या रिश्ता ठहरता है?<br />रही 'स्थिर है शव सी-बात' की बात, तो मुझे एक मुश्किल है. क्योंकर इसका यह पाठ संभव है कि 'जो स्थिर है, शव है.' फिर 'सी' का क्या रहा जो अनेकान्तता की तरफ ले जाने वाला शब्द है. शव और बात के इतने ही निश्चयात्मक सम्बन्ध होते तो क्या शमशेर जी 'सी' का प्रयोग करते? मुझे तो नहीं लगता.मृत्युंजयhttps://www.blogger.com/profile/09135755676182103803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-7688417657305548862011-02-03T11:10:44.218+05:302011-02-03T11:10:44.218+05:30प्रत्येक शुभ कार्य में लगन और मेहनत लगती है, फिर य...प्रत्येक शुभ कार्य में लगन और मेहनत लगती है, फिर यह तो कत्तई जरूरी नहीं होता कि अर्थार्जन ही हो, लाभार्जन के तहत एक संतोषजनक, राहतभरी सांस छोडना बेहद ही उपजाऊ लगती है..। आपके द्वारा किये जाने वाले साहित्यिक उपक्रम सचमुच सराहनीय है और यह सब आपकी विद्वता दर्शाता है। मुझे प्रसन्नता है कि मैं आपसे जुडा और वो सब पढने को प्राप्त हो रहा है जिसे कहीं छूटा सा महसूस करता रहा हूं। इसक एक मतलब और होता है कि अब आप पर पहले से ज्यादा जिम्मेदारियां आन पडी है..यानि आपको मुझ जैसे पाठक की प्यास बुझाने के लिये यह क्रम न केवल बरकरार रखना होगा बल्कि पुष्ट भी बनाये रखना होगा। शमशेर बहादुर सिंह को पढा हुआ है, मगर पढा हुआ है माने ऐसा नहीं है कि उनकी लेखनी का चस्प विराम पा गया हो..बृहद लेखन की सीमा और उसका छोर पाने हेतु अभी लंबा समय है। <br />साधुवाद व शुभकामनाओं सहितअमिताभ श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/12224535816596336049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-41794956860106011282011-02-03T10:56:21.807+05:302011-02-03T10:56:21.807+05:30शमशेर जी के बारे में इन्टरनेट पर इतनी सुन्दर प्रस...शमशेर जी के बारे में इन्टरनेट पर इतनी सुन्दर प्रस्तुति मेरे संज्ञान में किसी ने नहीं दी । बहुत खूब. बधाई स्वीकारें.अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/05755723198541317113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-77640267274070152272011-02-02T17:05:50.325+05:302011-02-02T17:05:50.325+05:30शमशेर की कविता और उनकी कव्य-भाषा को कुछ और समझ पाय...शमशेर की कविता और उनकी कव्य-भाषा को कुछ और समझ पाया--- धन्यवाद आपको और व्योमेषजी को.प्रशान्तhttps://www.blogger.com/profile/11950106821949780732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-1063400797445887562011-02-01T09:56:30.613+05:302011-02-01T09:56:30.613+05:30शमशेर जी पर कितना कुछ बताती पोस्ट।शमशेर जी पर कितना कुछ बताती पोस्ट।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-31163755054804830042011-02-01T08:41:30.932+05:302011-02-01T08:41:30.932+05:30शताब्दी स्मरण के लिये मेरी बधाई स्वीकारें. व्योमेश...शताब्दी स्मरण के लिये मेरी बधाई स्वीकारें. व्योमेश जी ने श्रमपूर्ण काम किया है. शमशेर के काव्य से जूझना दुरूह कार्य है. यह बिलगाना ही अलग है कि छायावादी और प्रगतिशील कविता क्या है? आपका लेख, छायावादी काव्य गुणों की भांति, अच्छी भाषा का उत्कृष्ट उदाहरण है पर आप शमशेर के कविता चयन मे चूक गये हैं. यह कविता "उषा" इंटरमीडियेट आदि के कक्षाओं मे पढ़ाई जाती है और शमशेर की सरलतम कविताओं मे से है.अनुराग भाई का इंट्रोडक्टरी नोट पढ़ लगा, कोई विशिष्ट आलेख पढ़ने को मिलेगा, टूटी हुई बिखरी हुई, अम्न का राग या अन्य कविताओं पर चर्चा होगी.... किंतु आपका प्रयास अच्छा है.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/17509565752149775914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-81684122014432361372011-02-01T06:45:07.379+05:302011-02-01T06:45:07.379+05:30बधाई मेरी ! इसलिए कि आपने आरंभ में ही(परिचय में )श...बधाई मेरी ! इसलिए कि आपने आरंभ में ही(परिचय में )शमशेर की कविताई को जैसे उसके गर्भनाल पर खिलाने का सहज प्रयास किया है। "अर्थ की संभावनाएँ" अर्थ की केन्द्रीयता और अर्थ संप्रेषणीयता से बड़ी चीज है, जिसकी चर्चा आपने छेड़ी है । दृश्यों में बोलती शमशेर की कविता किसी आसान टोटके के सहारे आत्मीय नहीं हो सकती, यह अपने बनने की प्रक्रिया के समान ही ईमानदार बेचैनी की अपेक्षा रखती है। इस मौके से कुछ बातें याद आ रही हैं, शमशेर पर 'कसौटी' में नंदकिशोर नवल का एक लेख आया था, और शमशेर को वहाँ 'अर्थहीनता' के कवि के रूप में देखने की वकालत की गई थी। <br />शमशेर एक तरह से 'सहृदय' की भी जांच करते हैं, उसकी प्यास की और उसकी पहुँच की ।<br />व्योमेशजी का लिखा सार्थक है । मेरी बधाई उन तक पहुंचे !आशुतोष पार्थेश्वरhttps://www.blogger.com/profile/08831231551236237964noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-58499414709327091422011-02-01T00:57:20.621+05:302011-02-01T00:57:20.621+05:30शमशेर की कविता -
हर्ष से हिलोरते जलमे डूबी एक पेंट...शमशेर की कविता -<br />हर्ष से हिलोरते जलमे डूबी एक पेंटिंग ,<br />कि गहराई पाकर जीवंत हो उठे हों रंग ,<br />बहार आने को <br />कुछ उत्सुक ,कुछ व्याकुल .........!अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-16429065144836833102011-01-31T23:26:10.359+05:302011-01-31T23:26:10.359+05:30बहुत बढ़िया ,पठनीय और जरूरी पोस्ट.समशेर को जानने ...बहुत बढ़िया ,पठनीय और जरूरी पोस्ट.समशेर को जानने समझने की दिशा में एक और कदम. बहुत श्रम पूर्वक तैयार सामग्री को सामने लाने हेतु धन्यवाद.बधाई भाई.Brajesh Kumar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/07861200818432210470noreply@blogger.com