tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post6256136298653516512..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: महेश वर्मा की नई कविताएंUnknownnoreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-18190750010182439472011-10-04T22:24:06.964+05:302011-10-04T22:24:06.964+05:30अच्छी कविताएं .'इतिवृत्त' जैसी एक कविता के...अच्छी कविताएं .'इतिवृत्त' जैसी एक कविता के लिये ही मैं ताउम्र महेश वर्मा का प्रशंसक रह सकता हूं.Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-88274140249263058052011-10-01T21:37:01.938+05:302011-10-01T21:37:01.938+05:30Bahut umda kavitaen... Naye aayam kholti.Bahut umda kavitaen... Naye aayam kholti.समर्थ वाशिष्ठ / Samartha Vashishthahttps://www.blogger.com/profile/16678207418787737583noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-75773400777015333892011-09-28T08:51:27.336+05:302011-09-28T08:51:27.336+05:30very beautiful poetry..
mahesh keep upvery beautiful poetry..<br /> mahesh keep upAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/06320500380777646000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-65875324436006901462011-09-28T07:51:18.604+05:302011-09-28T07:51:18.604+05:30महेश जी अपनी एक कविता में जब यह कहते हैं कि 'म...महेश जी अपनी एक कविता में जब यह कहते हैं कि 'मृत्यु इंसान का चेहरा अप्रतिम रूप से बदल देती है' तो मैं अचानक से गौर करता हूँ कि उनकी कविताओं से गुजरते हुए मैं जैसे खुद को घटते हुए को अपनी स्मृति में देखते, घट चुके को कहीं दूर भविष्य में देखते हुए घटनाओं की एक कालातीत शाश्वत श्रृंखला में लौटता हुआ पाता हूँ - जहाँ देखना कभी खत्म नहीं होता, मरने के बाद भी नहीं | महेश जी की यहाँ प्रस्तुत कविताएँ मनुष्य के बुनियादी व उसकी मौलिक इच्छाओं-आकांक्षाओं के बारे में कुछ जरूरी चीज़ों/स्थितियों से हमारी पहचान कराती हैं | चीज़ों/स्थितियों को उनके अंतर्मुखी क्षणों में पकड़कर हमें उनके सामने खड़ा कर देती हैं और हम नम-संवेदनाओं से उन्हें और उनमें खुद को देख पाते हैं |SWAMI ANALANANDhttp://www.blogger.com/profile/12836611162321633100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-13297420305965132822011-09-27T21:50:43.706+05:302011-09-27T21:50:43.706+05:30पहली कविता 'पुराना दिन' जिस तरह अतीत को सक...पहली कविता 'पुराना दिन' जिस तरह अतीत को सकारात्मक टूल की तरह देखती है, वह मेरे जाने नया और बेहद आश्वस्त करने वाली है. <br /><br />दरअसल, इस समय की बहुत सारी रचनाएँ जिस तरह अतीत को शरणगाह बना कर चल रही थी, वे अपने निबाह में कई कई बार रियेक्शनरी भी हो जा रही हैं. वे गलत को गौरवांवित करने का टूल भर हो जाती हैं. चालू शिल्प में नॉस्टेल्जिया के गुणगान कविता पर ही भारी पर जा रहे हैं. कई कई बार तो रचना अतीत के आगे समर्पण कर देती है और यह कहने की तो जरूरत ही नहीं कि अच्छी रचनाओं के अभाव में उन्हें ही सराहा जाता है, जिनका समर्पण देर से खुलता है. <br /><br />अतीत से यह उम्मीद कि खिलाफ गवाही के दिन उठ खड़ा होगा, विलक्षण बात है. यहाँ से आगे यह आशा की जानी चाहिए कि नॉस्टेल्जिया का इस्तेमाल लोग सोच समझ कर करेंगे. <br /><br />दूसरी रचनाएँ भी बहुत अच्छी हैं.चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06676248633038755947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-52747105464565153292011-09-27T21:46:12.343+05:302011-09-27T21:46:12.343+05:30पहले भी पढ़ चुका हूं महेश की कवितायें कुछ पत्रिकाओं...पहले भी पढ़ चुका हूं महेश की कवितायें कुछ पत्रिकाओं में . अद्भुत हैं कवितायें. बधाई .dinesh tripathihttps://www.blogger.com/profile/12195151895327682585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-43517218391750253492011-09-27T21:23:27.897+05:302011-09-27T21:23:27.897+05:30अलग कहन और कथ्य की सुन्दर रचनाएँ जिनमें बचपन के और...अलग कहन और कथ्य की सुन्दर रचनाएँ जिनमें बचपन के और पीछे छूटे हुए परिवारजन सपनों में आवाजाही करते रहते हैं.ताजगी और सुकून का आभास कराने वाली यह प्रतिभा उज्जवल भविष्य की उम्मीद जगाती है.इन कविताओं को पढते हुए शब्दों के जादुई और वायवीय प्रयोग पर भी ध्यान जाता है जिससे सीधी सरल भाषा असरदार हो जाती है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-38333049119111597502011-09-27T20:52:43.344+05:302011-09-27T20:52:43.344+05:30बहुत ही अच्छी कवितायें, बस पढ़कर आनन्द आ गया।बहुत ही अच्छी कवितायें, बस पढ़कर आनन्द आ गया।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-4326861920446882692011-09-27T18:27:47.775+05:302011-09-27T18:27:47.775+05:30अभी तो कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दे पा रही हूँ, इतनी...अभी तो कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दे पा रही हूँ, इतनी सुन्दर हैं कविताएँ...अभी बहुत सारे मौन में सुनना होगा बार-बार...रीनू तलवाड़https://www.blogger.com/profile/13029218222561208404noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-44568183383926127872011-09-27T18:02:46.807+05:302011-09-27T18:02:46.807+05:30तुम्हारी इच्छा से बाहर थी तुम्हारी प्रतीक्षा .
तुम...तुम्हारी इच्छा से बाहर थी तुम्हारी प्रतीक्षा .<br />तुम्हारी प्रतीक्षा से बाहर तुम्हारा प्रेम.<br /><br />जितनी बार महेश को पढ़ती हूँ वे चौंकाते हैं, विश्वास जगाते हैं कि हालात कितने ही ख़राब हों बची ही रहेगी कविता. सचमुच गहरे उतरती हैं कवितायेँ और उतनी ही आसानी से. सभी कवितायेँ बेहद असरदार. लिखते रहिये महेश जी खूब...Pratibha Katiyarhttps://www.blogger.com/profile/08473885510258914197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-77342935027185278452011-09-27T17:53:27.056+05:302011-09-27T17:53:27.056+05:30मरा नहीं है वह कोई भी पुराना दिन
राख, धूल और कुहास...मरा नहीं है वह कोई भी पुराना दिन<br />राख, धूल और कुहासे के नीचे वह प्रतीक्षा की धडकन है<br />गवाही के दिन वह उठ खड़ा होगा ....<br /><br />"बाहर" to adhbhut haiपारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.com