tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post5690420425294142514..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: बही - खाता : ६ : प्रभात रंजनUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-50584907139132694932009-04-13T17:30:00.000+05:302009-04-13T17:30:00.000+05:30prabhat ranjan ka yah aalekh bahut saaf-suthara, s...prabhat ranjan ka yah aalekh bahut saaf-suthara, samvedanaksham, sundar, aatmiya & arthagarbh hai. iske alaawa yah kaafi revealing & enlightening bhi hai, unki kahaaniyon ki hi maanind ! yahi wajah hai ki mere jaise unke samkaaleenon ke liye ismein seekhane-jaanne ko moolyavaan bahut-kuchh hai.<BR/> bahut qhushi & taazagi jagaane vaale is aalekh ke liye prabhat ji ko abhivaadan & anurag ji ka shukriya !<BR/> ---pankaj chaturvedi<BR/> kanpurUnknownhttps://www.blogger.com/profile/02638993799838924937noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-54173899450701254902009-04-11T22:51:00.000+05:302009-04-11T22:51:00.000+05:30प्रभात की कहानियों की सहजता अपने पाठक को यथार्थ के...प्रभात की कहानियों की सहजता अपने पाठक को यथार्थ के कठिनतर-व्यापकतर सूत्रों से उलझा देने का बेहद अहम् काम करती हुई आती है - और जैसा गीत कहते हैं, " बिना किसी शोर-शराबे के " आती है. वह एक सारवान और जनप्रिय विन्यास से प्यार करते, और ज़्यादा उसकी ओर जाते लेखक हैं.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/06989406251621372024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-85389661044871761252009-04-11T22:32:00.000+05:302009-04-11T22:32:00.000+05:30प्रभातरंजन जी का कहानी संग्रह खरीदा है. अच्छा लगा....प्रभातरंजन जी का कहानी संग्रह खरीदा है. अच्छा लगा. बधाई !रागिनीhttps://www.blogger.com/profile/06003175239354037443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-26170545083354844622009-04-11T17:58:00.000+05:302009-04-11T17:58:00.000+05:30प्रभात जी कहानियों की तरह सरल, आत्मीय और गहरी. बि...प्रभात जी कहानियों की तरह सरल, आत्मीय और गहरी. बिना किसी शोर-शराबे के. लेखक के क़रीब पहुंचाते हुए.Geet Chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/14811288029092583963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-89011754080515483242009-04-10T23:25:00.000+05:302009-04-10T23:25:00.000+05:30प्रभात जी आपकी कहानियाँ लगातार अच्छी लगती रही हैं ...प्रभात जी आपकी कहानियाँ लगातार अच्छी लगती रही हैं ! तुषार के कविता संग्रह में भी आपका ज़िक्र पढ़ा है. इस बही- खाते में भी काफ़ी कुछ सोचने महसूसने को है. जैसे यह कि आपके जैसा एक लोकेल हम सबके पास है -<BR/><BR/>वह कहानियों में आता है ! वह कविताओं में आता है ! वही कहीं न कहीं हमारे लेखक को जागता है ! <BR/><BR/>शुभकामनाएँ !शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-56942728683770200412009-04-10T17:01:00.000+05:302009-04-10T17:01:00.000+05:30आलेख मन की मिट्टी में पानी की बौछार सा गिर उसे सों...आलेख मन की मिट्टी में पानी की बौछार सा गिर उसे सोंधा कर गया...मेरा दुर्भाग्य है की आज तक प्रभात जी की कोई रचना पढने का अवसर नहीं मिला है...<BR/>कृपया यदि वस्तृत ब्यौरा दे दें इसे खरीदकर पढने में सफल हो पाऊँगी....इसके लिए आपकी आभारी रहूंगी..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-24623530861950581072009-04-10T15:42:00.000+05:302009-04-10T15:42:00.000+05:30प्रभात रंजन की कहानियो में प्लाट से ज्यादा महत्वपू...प्रभात रंजन की कहानियो में प्लाट से ज्यादा महत्वपूर्ण उनके पात्र होते हैं. वे पात्र जो शायद आपसे किसी पान की दुकान पर मिले थे या फिर किसी नुक्कड़ पर ताश खेलते रहते थे, शादी ब्याह के मौकों पर जिनकी सनक - पिनक आपकी ताज़ा स्मृतियों का हिस्सा हो गए हैं. फिर चाहे वह कोचिंग सेंटर में पढाने वाला कोई अलक्षित आशिक हो या छत पर किसी की राह देखती कोई हिरोइन के अवतार में कोई मध्य वर्गीय अर्ध शिक्षित तरुणी. एकाएक सब आपके रोम छिद्रों से आँखों के आगे उग आते है और आपके सन्नाटों में आपसे कानाफूसी करते हैं. यही बात, मेरी समझ में , कहानी की जान होती है. दूसरी बात, जिसका मैं किसी भी साहित्यिक कृति में कायल होता हूँ, वह यह कि रचना में सादगी कितनी है. कहीं रचनाकार जाने अनजाने अपने ज्ञान या अपनी सृजनशीलता के दंभ में तो नहीं घिर गया, कहीं रचना उसके 'गहरे' 'गूढ़' सत्यान्वेषणों में दब तो नहीं गयी. साहित्य का महत्त्व अपने पाठकों के सन्दर्भ में भी आँका जाना चाहिए. रचनाकार अपने सत्य को, उसकी अनुभूति और विवेक को अपने पाठकों तक सहजता से संप्रेषित कर पता है या नहीं, यह मेरी राय में बहुत ज़रूरी है. कथा का शिल्प, उसका विन्यास, अंदाज़-ए- बयां, ये सारे गुण उसके बाद आते हैं. <BR/>प्रभात की कहानियो की सहजता और सरलता मुझे बहुत प्रभावित करती है. एक रचनाकार का आत्म संघर्ष, उसकी अपने जड़ को सूंघने की तड़प इस आलेख में खुल कर आई है. बधाई.Tushar Dhawal Singhhttps://www.blogger.com/profile/14406424952152408211noreply@blogger.com