tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post4649927778169897410..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: शम'अ हर रंग मेंUnknownnoreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-14702836829917675232008-06-10T01:11:00.000+05:302008-06-10T01:11:00.000+05:30vaid sab ki dono diariyan maine padhi hai. wilaksh...vaid sab ki dono diariyan maine padhi hai. wilakshan hai yh.akeli aur star men sirf malyaj ke diariyon ke jod ki.un pr unhin ki shaili men likha yh lekh adbhut hai. badhai.विद्या भूषणhttps://www.blogger.com/profile/05479819691452744615noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-85955139694153336092008-06-04T18:57:00.000+05:302008-06-04T18:57:00.000+05:30अनुराग जी यूं ही भटकते हुए आपके ब्लाग तक पहुंचा. अ...अनुराग जी यूं ही भटकते हुए आपके ब्लाग तक पहुंचा. अच्छा लगा. आपने उम्दा सामाग्री जुटायी हुई है. बधाई और शुभकामनायें.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-6388897774756208782008-06-01T18:48:00.000+05:302008-06-01T18:48:00.000+05:30क्त्नास्फ२१वैद साहब का कहने का सलीका बड़ा अनूठा है...क्त्नास्फ२१वैद साहब का कहने का सलीका बड़ा अनूठा है |अपने पात्रों के मुख से उन्ही की शैली मे कहलवाने की विधा आपको बाखूबी आती है |कही सामाजिक दायरे से बाहर आकर कुछ नया कहने की अकुलाहट तो कभी freud के मनोविश्लेशन की विधा का भारतीय पृष्ठभूमि मे मानसिक ज़द्दोज़हद का विश्लेषण | आज भी उनकी डायरी मे कुछ न कुछ नए पन्ने निकल आते है | हाल मे ही उनके उपन्यास 'एक नौकरानी की डायरी' को पढ़ने का अवसर मिला | यहा डायरी भी है और नौकरानी भी| एक तरफ़ नौकरानी के सामाजिक स्थिति को पडोसा है उन्होंने तो दूसरी तरफ़ उस नौकरानी मे मौजूद युवा होती वनिता का freudian चित्रण | बस यहा मौलिकता की थोडी कमी है| frued कुछ ज़्यादा ही नज़र आते है यहा |कुछ ऐसा ही उपन्यास लिखा था freud ने |sampuhttps://www.blogger.com/profile/07516764805570881509noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-79220932573921401012008-05-31T16:38:00.000+05:302008-05-31T16:38:00.000+05:30आप जानते है आज से चार साल पहले मैंने "कृष्ण बलदेव ...आप जानते है आज से चार साल पहले मैंने "कृष्ण बलदेव वैद" की कृति ''उसका बचपन'' पढ़ा था ये नोबेल मुझे बहुत पसंद आयी। अब उनकी डायरी....Ratneshhttps://www.blogger.com/profile/17061171991489206144noreply@blogger.com