tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post2843163733842990453..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: डायरी : ३ : गीत चतुर्वेदीUnknownnoreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-1094353837981560112013-05-24T10:12:11.732+05:302013-05-24T10:12:11.732+05:30‘’बाहर जितनों से बात होती है वे अमिताभ घोष ,अरुंधत...‘’बाहर जितनों से बात होती है वे अमिताभ घोष ,अरुंधती राय ,चेतन भगत को तो जानते हैं ,लेकिन हिंदी उर्दू वालों को कोई नहीं जानता |अनुवादक ही नहीं हैं ,या यहाँ वालों के लिखने में दम नहीं है ?या इंटर नेशनल रीडर को किस तरह कैटर करना है इन्हें आता ही नहीं ‘’आज यही मुद्दा यानि हिंदी साहित्य की ‘’सीमाबद्धता ‘’सबसे चिंतनीय और निराशाजनक विषय है |बावजूद इन वर्षों में हिन्दी का सर्वाधिक लेखन (संख्यात्मक आंकड़ों के आधार पर )होने के क्या हिन्दी के पास दो चार भी स्तरीय लेखक /अनुवादक नहीं हैं जो विश्वस्तरीय स्तर पर अपनी (हिन्दी की )उपस्थिति दर्ज करा सकें या फिर यहाँ की तुश्तिपूर्ण मानसिकता इसके लिए ज़िम्मेदार है?हिन्दी के जो लेखक अंग्रेज़ी में भी थोडा बहुत दखल रखते हैं भले ही लेखन हिन्दी में करें वो अधिकांशतः अपने ‘’संबंधों ‘’ का निर्वहन करते हुए अपनी (व्यक्तिगत तौर पर)कोई कहानी /कविता किसी दुसरे देश की भाषा में अनुवाद या उसकी समीक्षा किसी दूसरी भाषा में करने (अंतर्ध्वनि करवाने )का चौतरफा गुण गान तो करते ही हैं दूसरी तरफ वही ‘’ख्यातिनाम लेखक’’चेतन भगत और अमिताभ बासु जैसे “तथाकथित अंग्रेज़ी चिप्पी सज्जित हिन्दी लेखकों ‘’के लेखन को लुगदी साहित्य कहने में भी नहीं हिचकते |निस्संदेह आज हिन्दी लेखन पहले से दुगुना चौगुना किया जा रहा है बावजूद इसके गुणवत्ता और सरोकार पर प्रश्नचिन्ह अभी भी अपनी जगह खडा है | आपने पोलिश लेखकों का ज़िक्र किया या फिर विश्वस्तरीय किसी भी लेखक जैसे हेमिंग्वे,गोर्की,चेखव.ब्रेख्त.,मोपांसा आदि के साहित्य में आखिर क्या खासियत थी उनके लेखन में जो हमारे यहाँ नहीं ?अथवा ‘’होने के बावजूद’’अनुवाद की शिथिलता ?या कुछ और ? हिन्दी के ही मूर्धन्य लेखकों तक बात सीमित की जाए तो आज जब भी बात हिन्दी के लोकप्रिय और ख्यातिनाम लेखकों की निकलती है तो हमारी द्रष्टि प्रेमचन्द ,कमलेश्वर ,निर्मल वर्मा जैसे लेखकों पर टिक जाती है (क्षमा सहित)|हमारे यहाँ लेखन अपने ठीक से पढ़े जाने के पहले ही आलोचना का शिकार हो जाता है |हम अतिवादी प्रेमी लोग हैं आलोचना तो गाली गलौच (या गलौंज)तक और तारीफ़ तो आसमान तक |सोशल साईटों ने इस मनोवृत्ति को उकसाने में आग में घी का काम किया है| इस मनोवृत्ति के चलते क्या हम हिन्दी के भविष्य के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं ? आलोचना हिन्दी साहित्यकारों का संवैधानिक (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ लेते हुए )अधिकार भी है और स्वास्थ्य आलोचना की द्रष्टि से देखा जाये तो सही भी |लेकिन बिना पुख्ता प्रमाणों या समझ के बे सर पैर की आलोचना के संतोष सुख में हम नख शिख डूबे हुए हैं और डूबे रहना चाहते हैं |चेतन भगत अमिताभ घोष जैसे लेखक जिन्हें वैश्विक साहित्य के अनुक्रम में बतौर हिन्दुस्तानी लेखक माना जाता है (रेखांकित किया जाए )विद्वानों के अनुसार बेहद ''कचरा साहित्य '' लिखते हैं |सवाल सिर्फ ये हैं कि जो 'विद्वान -आलोचक' उक्त लेखकों को जिन २ मुद्दों पर कोसते हैं कटघरे में खड़ा करते हैं वे क्यूँ नहीं उन मुद्दों को खारिज कर उस स्थान को पाने की कवायद शुरू करते?क्यूँ नहीं झंडे गाड़ने के लिए किसी खुदाई का श्री गणेश करने का बीड़ा उठाते?वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-42022755789776044102013-05-24T08:26:15.540+05:302013-05-24T08:26:15.540+05:30बहुत 'जरुरी' पढने को मिला। इस तरह का विमर्...बहुत 'जरुरी' पढने को मिला। इस तरह का विमर्श इधर हमारे लेखक-पाठक दोनों के बीच से लगभग गायब है। अनुराग आपका शुक्रिया,डायरी के बेहतरीन अंश आपने पढवाए .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-71103444490841885522013-05-24T08:24:43.073+05:302013-05-24T08:24:43.073+05:30बहुत 'जरुरी' पढने को मिला। इस तरह का विमर्...बहुत 'जरुरी' पढने को मिला। इस तरह का विमर्श इधर हमारे लेखक-पाठक दोनों के बीच से लगभग गायब है। अनुराग आपका शुक्रिया,डायरी के बेहतरीन अंश आपने पढवाए .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-35365578118036996932013-05-24T08:04:26.335+05:302013-05-24T08:04:26.335+05:30देश विदेश के साहित्य का ईमानदारी से विश्लेषण करते ...देश विदेश के साहित्य का ईमानदारी से विश्लेषण करते हुए भारत में अंग्रेजी मैं लिखने वालों की तुलना में हिंदी लेखकों की दुर्दशा का सही चित्रण किया गया है.लेखकों को उनका सही स्थान न दिला पाने में आलोचकों के पक्षपाती रवैय्ये की भर्त्सना की गयी है.आज के माहौल में यह और भी सटीक है क्योंकि अतिसाधारण कृति की झूठी तारीफ करके उसे बैस्टसेलर बना दिया जाता है और गंभीर लेखकों को साहित्यिक खेमेबाजी के चलते दरकिनार कर दिया जाता है.यह साहित्य के पतन का चरम है जब नामी वयोवृद्ध लेखक और आलोचक इस खेल में शामिल हो जाते हैं.विश्वस्तर का साहित्य रचने के लिए बहुत प्रतिभा और मेहनत चाहिए. मगर शोर्ट कट से आगे बढ़ने वाले डिजर्विंग लेखकों पर ध्यान नहीं देने देते. श्रेष्ठ कृतियों का अंग्रेजी में स्तरीय अनुवाद न हो पाना भी हिंदी लेखकों के विश्व में पहचान न बना पाने का बड़ा कारण है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-75882051078134327012009-01-18T19:18:00.000+05:302009-01-18T19:18:00.000+05:30गीत भाई…पूरी तरह सहमत हूँ खासकर आखिरी वाले हिस्से ...गीत भाई…पूरी तरह सहमत हूँ खासकर आखिरी वाले हिस्से से।<BR/>अभी हमारे ग्वालियर के बुजुर्ग साहित्यकार प्रकाश दीक्षीत का उपन्यास आधी खिडकी पढा । 70 की शुरुआत मे लिखा था …अद्भुत क़िताब है पर किसी का ध्यान नही गया…ऐसी कितनी ही क़िताबे होंगी…ये पाठक वाला तिलिस्म तोडने के लिये कुछ तो करना होगा!!!!Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-31450150398005385622009-01-17T01:31:00.000+05:302009-01-17T01:31:00.000+05:30पढ़ कर कुछ अच्छा पढ़ने का संतोष मिला। प्रस्तुति केल...पढ़ कर कुछ अच्छा पढ़ने का संतोष मिला। प्रस्तुति केलिए अनुराग जी आप बधाई के पात्र हैं।एस. बी. सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09126898288010277632noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-74367859087982077942009-01-16T14:40:00.000+05:302009-01-16T14:40:00.000+05:30डायरी में इस तरह विमर्श करना, डायरी लेखन को प्रतिष...डायरी में इस तरह विमर्श करना, डायरी लेखन को प्रतिष्ठा देना भी है।<BR/><BR/>लेकिन आत्मसंघर्ष, आत्मावलोकन और कलाकार के अकेलेपन की असीम दुनिया, जो इस संसार से टकराती ही रहती है और एक कलाजन्य व्यग्रता ही है जो पेसोआ और मुक्तिबोध की डायरी को आज भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण बनाती है। गीत, तुम्हें शुभकामनाएं।कुमार अम्बुजhttps://www.blogger.com/profile/02635510768553914710noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-1269217054827030872009-01-14T23:39:00.000+05:302009-01-14T23:39:00.000+05:30achchi lagi aapki dayri bhi.anuvad ki bat mahatvap...achchi lagi aapki dayri bhi.anuvad ki bat mahatvapurn hai.<BR/>pallavkidak@gmail.compallavhttps://www.blogger.com/profile/03475995120391314299noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-79277928688393434492009-01-14T11:42:00.000+05:302009-01-14T11:42:00.000+05:30अच्छे पन्ने गीत भाई की डायरी से पेश किए अनुराग! बह...अच्छे पन्ने गीत भाई की डायरी से पेश किए अनुराग! बहुत सुन्दर.Ashok Pandehttps://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-83820889595686672252009-01-12T20:32:00.000+05:302009-01-12T20:32:00.000+05:30काफ़ी दिनों बाद कुछ सीरियस पढ़ रहा हूँ गीत भाई. लेक...काफ़ी दिनों बाद कुछ सीरियस पढ़ रहा हूँ गीत भाई. लेकिन दरवाजा की कहीं पर भी पहली बार चर्चा देख रहा हूँ. खुशी हुई कि आप उसकी महत्ता मानते हैं.महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.com