tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post1800696400080298300..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: शब्दों से गपशप : कुंवर नारायणUnknownnoreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-46352539052640275402011-02-08T08:53:11.193+05:302011-02-08T08:53:11.193+05:30शब्दों की गरिमा और उसके अर्थार्थ पर बहुत अच्छी पोस...शब्दों की गरिमा और उसके अर्थार्थ पर बहुत अच्छी पोस्ट. <br /><br />अनुराग, कुँवर जी की डायरी पर तुम्हारा ध्यान और गम्भीरता तारीफ की हकदार है. पिछला हिस्सा भी नायाब था.चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06676248633038755947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-41322338451167607032011-02-07T12:34:43.802+05:302011-02-07T12:34:43.802+05:30दिलचस्प !!!!दिलचस्प !!!!डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-90858257010307190152011-02-06T21:27:38.016+05:302011-02-06T21:27:38.016+05:30हमारी अभीव्यक्ती के माध्यम होने से अलग शब्दों की न...हमारी अभीव्यक्ती के माध्यम होने से अलग शब्दों की निश्चित ही अपनी एक दुनिया है. ये दुनिया शायद भाषा-संसार से भी दूर कहीं है. उस संसार से उठ कर शब्द खुद अर्थ के पास पहुंचे या उनके अर्थ उन्हें तलाशते उस लोक तक पहुंचे, लेखक ने न जाने ऐसे कितने शब्दों के रहस्य को पाया होगा. शब्दों के उस लोक में पहुंच कर उनसे बतियाते, उनके बीच विचरते, भाषा से अलग उनके अस्तित्व को नीहारते और इस सब के बाद भी कभी उनकी आवाज नहीं सिर्फ़ एक ’मौन’ को पाते न जाने कितने शब्दों को कुंवरजी ने अत्मीय बनाया होगा. शब्दों को एक ’ऐतिहासिक ईमारत या शिल्प की तरह’ ’बिलकुल अपनी तरह अपनी कविता’ में बचाये रखने की चिन्ता भी इसीलिये है कि वे उन्हें अपने लगते हैं.शब्दों के माध्यम से एक नयी भाषा तक पहुंचने का प्रयास, उन्हें तयशुदा अर्थों से अलग कर कविता में उन्हें नये सिरे से रचते ’एक खास तरह की मुक्ति का अनुभव’ हर किसी के लिये संभव भी नहीं. <br />कुंवरजी के ये नोट्स शब्द-भाषा-व्याकरण के उस जादू को तोड़ने का प्रयास है ’जिनके साथ हमारी परिचित भाषा की शर्तें हमें एक खास तरह बंधती हैं कि हम उनके हैं, उनके बावजूद नहीं हैं.’<br />शब्दों की आवाज सुनने को बाध्य कर रही हैं लेखक की पंक्तियाँ.<br />प्रस्तुती के लिये धन्यवाद.प्रशान्तhttps://www.blogger.com/profile/11950106821949780732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-82695237844705230122011-02-06T21:07:40.419+05:302011-02-06T21:07:40.419+05:30कई तरह के शब्द होते हैं जिनसे तरह-तरह के शब्दों की...कई तरह के शब्द होते हैं जिनसे तरह-तरह के शब्दों की दुनिया बनती है. ज़्यादातर शब्द तो मतलबी, लेन-देन, व्यावहारिक और व्यावसायिक मनोवृत्ति के होते हैं. ठोस ज़मीनी अर्थोंवाले शब्द. उनकी भी बातें सुनना ज़रूरी है. शारीरिक दुनिया में रहते उनकी अवहेलना नहीं की जा सकती. <br /><br />कुछ शब्द गुरु-घंटाल टाइप के होते हैं - चतुर, चालक, चंट - लेकिन कुछ शब्द सच्चे अर्थों में गुरुओं की तरह होते हैं. वे कम होते हैं. उन्हें खोजना पड़ता है. भीड़-भाड़ से दूर उनके एकांतों में जाकर, उनका शिष्यत्व करना पड़ता है. वे कम बोलते हैं, लेकिन जब भी बोलते हैं, मर्म और ज्ञान की बातें बोलते हैं. उन्हें ध्यान लगा कर सुनना पड़ता है, वरना उनकी बातें बिलकुल हवाई और अ-ठोस ध्वनियों की तरह सिर के ऊपर से निकल जाती है. कभी-कभी उनकी खोज में वनों और इतिहास की चोटियों तक जाना पड़ सकता है. ऐसा भी मुमकिन है कि वे शब्द न मिलें, उनकी जगह केवल एक ''मौन'' मिले. फिर भी, इस खोज का अपना अलग एक रोमांच है. अपने अन्दर एक अलग तरह का साहस और आत्म-विश्वास खोज पाने का आश्चर्य !<br />****<br />बहुत ही अद्भुत और गहरी सार्थक गपशप है भाई! साझा करने के लिए आभार!नवनीत पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-10184144675541968012011-02-06T20:47:04.199+05:302011-02-06T20:47:04.199+05:30भाषा के वृक्ष में लगे हुए शब्द जिन्हें तोड़ने की म...भाषा के वृक्ष में लगे हुए शब्द जिन्हें तोड़ने की मनाही की तख्ती की भाषा सब से पहले पढ़ने में आती है. लेकिन जहां यह तख्ती पढ़ना ही न आता हो वहां एक बार तो शब्दों को वृक्ष से तोड़ कर चखने को जी चाहता ही है <br />वाह ...कुवर जी ने शब्दों की माला को कही फेरते फेरते तोड़ दिया है और एक एक मनके का माला में होने का अर्थ समझ में आ रहा है. ....धन्यवाद आप का इसे हमारे बीच लाने का...NIRMAL PANERITravel Trade Servicehttps://www.blogger.com/profile/11770735608575168790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-12795341688030169072011-02-06T20:39:49.953+05:302011-02-06T20:39:49.953+05:30कुंवर जी ने सहज-सरल अंदाज में बहुत ही गंभीर बातें ...कुंवर जी ने सहज-सरल अंदाज में बहुत ही गंभीर बातें कही हैं. इसे पढ़ते हुए नागार्जुन की कविता की याद ताजा हुई जिसमें 'छले' गये शब्द सपने में धमका जाते हैं . बहुत सुन्दर पोस्ट के लिए साधुवाद.राजू रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/06383761662659426684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-13699627540221462192011-02-06T20:25:35.166+05:302011-02-06T20:25:35.166+05:30पिछली बार की तरह ही, कुछ और ज़्यादा परिष्कृत तरीक़े...पिछली बार की तरह ही, कुछ और ज़्यादा परिष्कृत तरीक़े से भाषा और उसकी चलन-कहन पर कुंवर जी का जो मत है, वह बड़ा संदेहास्पद और अनूठा है... संदेहास्पद होने से मेरा आशय - किसी भी भाषा के विकास को एक बने-बनाए ढर्रे से अलग देखना, जो कहीं से गैर-ज़रूरी नहीं है. "शब्दों" को नकार देना और उनसे होती हुई निर्माण-प्रक्रिया पर कुंवर जी और उन जैसे सभी की जो तल्ख़ निग़ाह है, वह कहीं न कहीं आज के हिन्दी साहित्य की दशा और दिशा को निर्मित करती हैं.ssiddhanthttp://ssiddhantmohan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-34044317806404792652011-02-06T19:39:07.225+05:302011-02-06T19:39:07.225+05:30speechless ,, apratim. is note par tippadi bhi sha...speechless ,, apratim. is note par tippadi bhi shayad shabdon se khelne bolne -batiyane vala koyee shabd-gapod hi kar sakta hai. mai to sirf abhibhoot hu. kuvar ji ko naman. aap ko kotisha dhanyvad.dinesh tripathihttps://www.blogger.com/profile/12195151895327682585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-88630334622498648532011-02-06T18:30:00.479+05:302011-02-06T18:30:00.479+05:30खेल कभी भाषा के अन्दर है कभी भाषा के इर्दगिर्द, कभ...खेल कभी भाषा के अन्दर है कभी भाषा के इर्दगिर्द, कभी भाषा के परे. मैं भाषा की ज़रूरतों के मुताबिक शब्दों को नहीं रख रहा हूँ : मैं शब्दों को लेकर एक नई भाषा रचने की कोशिश कर रहा हूँ, कोशिश में हूँ.<br />.....सुन्दर अभिव्यक्ति.....mark raihttps://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-63393956986797444752011-02-06T15:49:16.414+05:302011-02-06T15:49:16.414+05:30शब्द, भाषा, अभिव्यक्ति, सुन्दर चित्रण।शब्द, भाषा, अभिव्यक्ति, सुन्दर चित्रण।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-23195019021722373432011-02-06T15:48:45.517+05:302011-02-06T15:48:45.517+05:30हँसते - गाते ,ठिठोली करते शब्द ,नाराज शब्द ,उदास श...हँसते - गाते ,ठिठोली करते शब्द ,नाराज शब्द ,उदास शब्द ,लाल ,पीले ,हरे ,गुलाबी टेढ़े मेढ़े शब्द, कुंवर नारायण के शब्द ,मंगलेश डबराल के शब्द ,हसरत जयपुरी के शब्द ,शकीरा के शब्द राधे खरवार के शब्द ,सबद के शब्द ,आओ खेले शब्द - शब्द .निःशब्दAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/16315054585574087560noreply@blogger.com