tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post1725841629277517210..comments2024-03-20T11:47:25.959+05:30Comments on सबद: कथा : २ : हिमांशु पंड्या की कहानीUnknownnoreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-46315764486990781172011-01-10T11:46:00.909+05:302011-01-10T11:46:00.909+05:30kahani achhi lagikahani achhi lagiilakshi guptahttps://www.blogger.com/profile/03469873416519461500noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-84974036177868019482010-11-25T17:56:18.873+05:302010-11-25T17:56:18.873+05:30thanks a lot for selecting my work for this post.....thanks a lot for selecting my work for this post.. m feeling very greatRajesh R.Nairhttps://www.blogger.com/profile/14470501613083802891noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-11691710638283556382010-11-23T14:53:20.479+05:302010-11-23T14:53:20.479+05:30बधाई! रूपक में आकर बात पूरी तरह खुल गई है। शायद इ...बधाई! रूपक में आकर बात पूरी तरह खुल गई है। शायद इसीको रचना कहते हैं।माधव हाड़ाhttps://www.blogger.com/profile/05886966883315820678noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-4980108939805036562010-11-22T21:17:54.829+05:302010-11-22T21:17:54.829+05:30प्रिय मनोज ,
मेरी पहली कहानी &#...प्रिय मनोज ,<br /> मेरी पहली कहानी 'सूअर' नहीं 'थकान' थी जो 'वितान' में तुम्हारे ही सम्पादन में निकली थी .<br /> उम्मीद है अच्छे होगे .himanshuhttps://www.blogger.com/profile/09364856853134771001noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-28714559030924622882010-11-22T19:45:43.611+05:302010-11-22T19:45:43.611+05:30दिलचस्प है......
याद नहीं कहाँ एक लम्बी कहानी पढ़ी ...दिलचस्प है......<br />याद नहीं कहाँ एक लम्बी कहानी पढ़ी थी जिसमे सरकार किसी जाति विशेष के लिए कोई स्कीम रखती है जिसमे एक परिवार है जिसका मुखिया भालू पालता है ...ओर उसकी पत्नी ओर बेटा उसे भालू को छोड़ कर आन एके लिए दबाव डालते है .भालू से उसका मोह....ओर रिश्तो में वक़्त के साथ आता स्वार्थ .ग्रामीण प्रष्टभूमि होने के बावजूद उस कहानी की निरंतरता ने मुझे न केवल चकित किया था ....बल्कि एक दूसरी दुनिया को देखने का विज़न भी...... <br />लेखक दरअसल एक दूसरी दुनिया अपने बाइस्कोप से दिखाने वाला ही तो हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-61848633144230463312010-11-22T11:34:22.874+05:302010-11-22T11:34:22.874+05:30हिमांशु और उसके दोस्त लोग एक हस्तलिखित पत्रिका निक...हिमांशु और उसके दोस्त लोग एक हस्तलिखित पत्रिका निकला करते थे" वितान ",उसमे हिमांशु की कहानी छपी थी "सूअर ".अगर हस्तलिखित पत्रिका में छपने को प्रकाशन मन जाये तो यही पहली प्रकाशित कहानी ठहरती है ,बात इस कहानी की ,हिमांशु निबंध लिखते तो शायद अपनी बात ज्यादा स्पष्ट ढंग से कह पाते.मनोजAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-543843969643439432010-11-21T15:37:24.681+05:302010-11-21T15:37:24.681+05:30अच्छी कहानी है ।अच्छी कहानी है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-89590429155531370872010-11-21T02:53:23.799+05:302010-11-21T02:53:23.799+05:30हिमांशु की यह कहानी राजस्थान में फासीवादी राजनीति ...हिमांशु की यह कहानी राजस्थान में फासीवादी राजनीति के प्रोत्साहन से पुनर्नवा हुई सती-प्रथा, हाल के खाप पंचायतों के शासन समर्थित बर्बर फैसलों और हाल के अरुंधती के कश्मीर वाले बयान पर चलाए जा रहे घृणित अभियानों में अन्तर्निहित बहुमतवादी लोकतंत्र की फासिस्ट परिणतियो के विरोध में लिखी एक रूपक-कथा है. एलेगरी की ताकत ही यह है कि वह एक साथ अनेक संदर्भो में उद्घाटित हो रहे युग-सत्य को एक ऐसा आकार देती है जो उन संदर्भो के मिट जाने के बाद भी प्रासंगिक रहता है और दूसरे संदर्भो में भी जब वही सत्य एक भिन्न देश-काल में उभरता है तो भी वही एलेगरी उससे भी आगाह करने में समर्थ होती है. ऐसे में अत्यंत सुगठित रूपक-कथा वह होती है जिसमे समकालीन सन्दर्भ 'बिटवीन दी लाइंस' आए, प्रत्यक्ष नहीं. एलेगरी अगर 'डेटेड' हुई तो लम्बे देश-काल में उसकी अर्थवत्ता प्रभावित होती है. हिमांशु अगर ऐसे लिख पाए, तो यह सिर्फ प्रेमचंद और लू शुन की परम्परा नहीं , बल्कि नज़दीक देखें तो कही विजयदान देथा भी आपको दिख जाएंगे. सुन्दर है मित्र , बधाई!- प्रणयpranay krishnahttps://www.blogger.com/profile/17453882297227785432noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-30107445105068730522010-11-20T23:14:06.795+05:302010-11-20T23:14:06.795+05:30बेहतर...बेहतर...रवि कुमारhttp://ravikumarswarnkar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-64486220585694166442010-11-20T18:48:45.841+05:302010-11-20T18:48:45.841+05:30प्रभावी कथा व लेखन शैली।प्रभावी कथा व लेखन शैली।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-17644494174309659552010-11-20T15:15:28.225+05:302010-11-20T15:15:28.225+05:30एक असरदार कहानी ... बधाईयाँएक असरदार कहानी ... बधाईयाँSushil Yatinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-62920291744506153312010-11-20T10:31:05.095+05:302010-11-20T10:31:05.095+05:30जबरदस्त कहानी......बधाई.....जबरदस्त कहानी......बधाई.....anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-82665983565987763382010-11-19T23:09:19.645+05:302010-11-19T23:09:19.645+05:30himanshuji ko unki pahli kahani ki bahut badhaai.a...himanshuji ko unki pahli kahani ki bahut badhaai.achha rupak hai. maaf kijiyega mera computer hindi men likhne se mana kar raha hai.prabhat ranjanhttp://www.janakipul.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-76133061888635381842010-11-19T19:56:29.570+05:302010-11-19T19:56:29.570+05:30पहली ही कहानी और इतनी परिपक्व, इतनी सिम्बॉलिक. हमा...पहली ही कहानी और इतनी परिपक्व, इतनी सिम्बॉलिक. हमारी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता ध्री ( नाम बहुत अच्छे और मौलिक) हिमांशु बहुत बहुत बधाई, कहानी निसन्देह हम सब के गर्व की वजह है, उपलब्धि चाहे तुम्हारी हो.manishahttps://www.blogger.com/profile/10156847111815663270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-68014859281094751582010-11-19T19:35:46.168+05:302010-11-19T19:35:46.168+05:30कहानी में दम हैं और अद्भुत व्यंजना शक्ति है…बस पोस...कहानी में दम हैं और अद्भुत व्यंजना शक्ति है…बस पोस्टर की भाषा मेरे ख़्याल से हिन्दी या राजस्थानी होनी चाहिये थी…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-41747767598299022332010-11-19T17:18:43.197+05:302010-11-19T17:18:43.197+05:30हिमांशु जी, कहानी के लिए बधाई ! बहुत पहले इसी आधार...हिमांशु जी, कहानी के लिए बधाई ! बहुत पहले इसी आधार की एक कहानी पढी थी राजेंद्र कुमार की, नमक का दरोगा भाग-दो, उसकी याद आ गयी!<br />खैर, कहानी छोटी है, यथार्थ का बोझ भारी. बहुत कुछ कहने का दबाव इतना है कि कहानी बार बार अपनी विधा से निकल कर बाहर जाना चाहती है. पर यह क्या मुश्किल है? आखिर कोई करे क्या? ऐसे में कोई युक्ति (डिवाईस) ही कहानीकार की मुश्किल हल कर सकती थी. वह युक्ति इस कहानी में है परम्परा. प्रेमचंद्र और लू शुन की परम्परा. लेकिन सिर्फ परम्परा के साथ जाने से तो कोई भला न होगा तो कहानीकार परम्परा का समकालीनीकरण करता है. तब परम्परा की सहजता और वर्तमान की गुत्थी की मुटभेड होती है. कहना चाहिए कि यह कहानी इस नाजुक संतुलन को वर्तमान के पक्ष में झुका देती है. पर यही तो कहानीकार चाहता है. फिर गड़बड़ कहाँ हुई? जहां तक मैं समझ पाया, इस झुका देने में की प्रक्रिया में वे शक्ति-श्रोत कहानी से अलग हो जाते हैं, जिनकी तरफ कहानी शुरू में हमें ले जाती है. इसीलिये गाँव, जो कि गाँव ही होगा, की दीवार पर अंगरेजी का पोस्टर है, सच को पुरजोर तरीके से कहता हुआ पर एकदम अलग जगह दीखता हुआ. यही मुझे लगा. शायद.<br />मृत्युंजयमृत्युंजयhttps://www.blogger.com/profile/09135755676182103803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-69829100202349062962010-11-19T16:59:26.371+05:302010-11-19T16:59:26.371+05:30भाई अशोक, इतना ज्यादा पढ़ाकू कभी नहीं रहा कि हर क...भाई अशोक, इतना ज्यादा पढ़ाकू कभी नहीं रहा कि हर कतर ब्योंत को सहेजता र सकूं। निगोडी नौकरी इतना समय भी नहीं देती। हां ये तो तय है कि ये उदय जी के पास वाया हिमांशु तो हरगिज नहीं पहुंची होगी।नवनीत बेदारhttps://www.blogger.com/profile/07647276768875403285noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-2808909572296460122010-11-19T16:27:17.540+05:302010-11-19T16:27:17.540+05:30और उदय प्रकाश जी ने किस्सागोई की उस शैली की नकल क...और उदय प्रकाश जी ने किस्सागोई की उस शैली की नकल कहां से की है, नवनीत जी यह भी बता जाएये....Ashok Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-73047463416593480612010-11-19T16:10:25.385+05:302010-11-19T16:10:25.385+05:30भाई बधाई।
कहानी का रूपक रोचक होने के साथ ही देश का...भाई बधाई।<br />कहानी का रूपक रोचक होने के साथ ही देश का दर्द भी बयान करता है। <br />लेकिन पाश को लोकल शायर बताना उदय प्रकाश की किस्सागोई की नकल सा लगता है। वहां पर एक शायर का उसका नाम लिए बगैर भी विरोध दर्ज हो सकता है।नवनीत बेदारhttps://www.blogger.com/profile/07647276768875403285noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7056011166391074188.post-27763987424019188292010-11-19T16:08:03.714+05:302010-11-19T16:08:03.714+05:30भाई बधाई।
रूपक के रूप में लिखी ये कथा रोचक होने क...भाई बधाई। <br />रूपक के रूप में लिखी ये कथा रोचक होने के साथ ही एक देश का दर्द बयान करती है। हां, पाश का लोकल गांव का शायर होना उदय प्रकाश की किस्सागोई की नकल सा लगता है।नवनीत बेदारhttps://www.blogger.com/profile/07647276768875403285noreply@blogger.com